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________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा • (14) दिनांक : 28-2-1970 प्रति साध्वीश्री निर्मलाश्रीजी आदि अहमदाबाद. मेरी साधना के विषय में आपने प्रश्न प्रेषित किया है कि षट्चक्रभेदन की रीति से साधना करते हैं या अन्य प्रकार से ? इस वैयक्तिक प्रश्न के स्वल्प उत्तर के सिवा अधिक लिखने का समय एवं वृत्ति नहीं है। इस देहधारी को आगारवास में बसते हुए मोहमयी नगरी भातबाज़ार स्थित गोदाम में बिना प्रयास के 19 वर्ष की आयु में समाधि स्थिति हो गई । उसमें विश्व का स्थूलरूपेण अवभासन हुआ । भरतक्षेत्र के साधकों की दयनीय दशा देखी । अपने पूर्वसंस्कार स्मृति में उभर आए। उसके पश्चात् बद्ध से मुक्त सारी आत्माओं को नीचे से ऊपर तक देखा । जो दर्शन पूर्वसंस्कारविहीनों को षट्चक्रभेदन द्वारा संभव होता है वह अनायास हुआ । उस से जाना जा सका कि पूर्व भवों में चक्रभेदन करके ही इस आत्मा का इस क्षेत्र में आना हुआ है । वर्तमान में तो स्वरूपानुसंधान ही उसका साधन है । अधिक क्या लिखू ? राजयोग पद्धति से अंतर्योति के द्वारा और हठयोग पद्धति से प्राणायाम के द्वारा चक्रभेदन हो सकता है । जैन साधन प्रणाली राजयोग प्रधान है और गुरुगम के द्वारा इस काल में उससे बीज केवलज्ञानदशा प्राप्त की जा सकती है । आपकी तथा प्रकार की जिज्ञासा अनुमोदनीय है । अस्तु आनंद आनंद आनंद, सहजानन्द (प्रतापभाई के प्रति) एवंच :- माताजी के देह में हार्ट विकनेस और हार्ट प्रेशर का उपक्रम हुआ था । उसमें अभी राहत है । उन्होंने हृदय की ऊर्मि से आपको अनगिनत आशीर्वाद विदित किए हैं । खेंगारबापा आपकी पृच्छा करते रहते हैं । अपने में मस्त हैं । आत्माराम को खानपान के विषय में, कुछ अधिक वैराग्य प्रवर्तित होता होगा ऐसा प्रतीत होता है । __ श्री चंदुभाई, श्री छोटुभाई इस पूर्णिमा पर शायद पधारें ऐसा अनुमान है । पत्र नहीं है। शेष आश्रमवासी भी सितारवादन पुनः पुनः सुनने के लिए उत्सुक दिखाई देते हैं । परन्तु उसके वादक आप तो इन दिनों कैसे आ सकते हैं ? अस्तु । पत्रदर्शन की तो शीघ्र अपेक्षा रहेगी ही । सहजानंदघन के सहजात्म स्मरण सह हार्दिक आशीर्वाद । (103)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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