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________________ • श्री सहजानंदघन गुरूगाथा • ॥ ॐ नमः ॥ ॥ सहजात्म स्वरूप परमगुरू ॥ परावाणी की यह पत्रधारा..... । परमगुरू की परम अनुग्रहपूर्ण परावाणी की यह पत्रधारा बही तो है अल्प कालखंड के लिए हम दोनों बंधुओं पर (दिसम्बर 1967 में विमलाताई संग इडर पहाड़ पर गुरुदेव के स्मरणीय प्रथम दर्शन के पश्चात् )* नवम्बर 1969 से सितम्बर 1970 के बीच । परंतु यह 'कालोऽयम् निरवधि' की स्मृतिदायक चिरंतन काल के कुछ शाश्वत पत्र छोड़ जाती है । महाव्याधि के होते हुए भी महा उपकारक गुरुदेव के लिखे हुए बहुत से पत्र विश्वसाहित्य की अमर संपत्ति बन पर्वकालीन साधकों के लिए तो ये अमूल्य प्रेरण स्त्रोत हैं। हमें सदा काल के लिए परिप्लावित कर गए ये पत्र सभी के लिए अमृत-वर्षारूप बनो । ___उनके ये पत्र और उनकी अंतिम दिनों की वाणी के कुछ साक्षात् टेइप भी जो हमारे कानों और हृदयों में सदा अनुगुंजित रहते हैं, वे भी 'शिवमस्तु सर्व जगतः' सिद्ध हों । ॥ श्री सद्गुरुचरणार्पणमस्तु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ बेंगलोर, दिनांक : 7-4-2014 A : श्री चन्दुभाई पर पत्र (1) श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, हम्पी, रत्नकूट _12-11-1969 सद्गुणानुरागी श्री चन्दुभाई टोलिया सपरिवार कल श्री प्रतापभाई का बेंगलोर से लिखा हुआ पत्र मिला । उसमें उनके द्वारा अभिव्यक्त उनके वैयक्तिक लाभ के विषय में जान कर परम प्रसन्नता हुई । आप सचमुख भाग्यवान हैं कि आपको ऐसे पराभक्तिप्रधान हृदयवाले विद्वान् अनुज मिले हैं। पत्र में उन्होंने स्वयं लिखे हुए लेख के विषय में दिग्दर्शन किया है। - आप सपरिवार तथा आपके मित्र श्री छोटुभाई आदि के लिए यह नूतन वर्ष आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक दृष्टि से उन्नतिशील बने ऐसे इस देहधारी तथा माताजी के अंतःकरण के आशीर्वाद स्वीकार करें । दीपावली की तीन दिन की धन निर्विघ्नरूप से सम्पन्न हुई । प्रति वर्ष की तुलना में इस साल उसमें कुछ विशेषता ही रही । कई भव्यात्माओं को देहमान छूट गया और भावावेश में उन्हें अपूर्व अनुभव हुए । * (संदर्भ "अद्भुत योगी श्री सहजानन्दघन" पृष्ठ : 102 : गुरुदेव और विमलाताई का मिलन) यहाँ पृ. 116 : (88)
SR No.032332
Book TitleSahajanandghan Guru Gatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2015
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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