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________________ Second Proof Dt. 31-3-2016 4 - • महावीर दर्शन पूर्व संस्कार परिवार संस्कार मंगलमय प्रभु महावीर का महाजीवन-विशेषकर महामौन एवं ध्यान से भरा हुआ उनका अंतस - स्वरुपी महाजीवन हमें सदा परमप्रिय रहा है, प्रेरणादाता रहा है, आदर्शवत् बना रहा है। - पूर्वसंस्कार, पूर्वजन्म के संस्कार इस में निःशंक प्रथम निमित्त बने हैं यह उन पुराणपुरुषों की, परमपुरुषों की ही कितनी कृपा अनंत असीम कृपा ! महावीर कथा फिर नित्य सिद्धचक्र आराधक, बुलन्द कंठ भक्ति-गाता प्रपिता एवं जिन-तत्त्व-संनिष्ठ पिता एवं पालने में से ही 'आत्मसिध्धि' का गान - श्रवण करानेवाली माता इन सभी ने श्रीमद् के पदों के संगीतमय गानों के द्वारा हमारी जिनभक्तिसंगीत की यात्रा बाल्यावस्था से ही प्रारम्भ करवा दी थी । परिवार के इन संस्कारों का यहाँ संकेत मात्र ही । फिर परिवार में ही युवावस्था में उपकारक पिताजी द्वारा "मोक्षमाला" ग्रंथ के प्रदान एवं मरणासन्न साधक क्रान्तिकार लघु-बन्धु (अनुज ) द्वारा एक शासनदेवता - अनुभव प्रसंग में किसी तीर्थंकर चरित्र, महावीर चरित्र के आलंबन का साधनाआदर्श-संकेत- ये सब परिवार संस्कार निमित्तरूप बनते चले । - - हमारे सोलहवें देह - जन्मदिन पर संप्राप्त श्रीमद् राजचन्द्रजी प्रणीत इस "मोक्षमाला " ग्रंथ ने, उसके तत्क्षण- तत्काल के अमरेली (जन्मभूमि) के राजमहल उद्यान एवं स्मशान स्थान के अध्ययनअनुचिंतन ने, सद्य-जीवन को परिवर्तक मोड़ दिया। यम-नियम-संयमादि बाह्य-साधनों को अपनाने के साथ ही किंचित् अंतर्यात्राएँ भी प्रारम्भ हुईं। ये अध्ययन-अनुचिंतन- अनुशीलन के पश्चात् अंतर्ध्यान के लोक में भी कुछ कुछ गति करने लगीं - वतन के उस उथान स्मशान से प्रारम्भ होकर, बहिर्यात्राओं के बीच की अंतर्यात्राएँ। वे फैलती रहीं पूना की 'पर्वती' पर्वतिका, नालासोपारा - तुलींज की पहाड़ियाँ और भारतभर में कहाँ कहाँ पर, कि जिनका कुछ संस्पर्श आगे हम करने जा रहे हैं। तब श्रीमद्जी एवं भगवान महावीर के महाजीवनों का एक आदर्श दृष्टि-सन्मुख जागा था "युवावय का सर्वसंगपरित्याग परमपद को प्रदान करता है ।" (4) वर्तमानकालीन श्रीमद् राजचन्द्रजी एवं प्राक्कालीन भगवान महावीर दोनों के ऐसे बाह्य संसार जीवन के बीच से चल रहे आंतरिक जीवन के 'सर्वसंग परित्याग की आदर्श-धारा सतत यह गुंज- अनुगुंज जगा रही थी "अपूर्व अवसर ऐसा आयेगा कभी, कब होंगे हम बाह्यांतर निर्ग्रथ रे, सर्व सम्बन्ध का बन्धन तीक्ष्ण छेदकर, कब विचरेंगे महत्पुरुष के पंथ रे ?" तो तब से, पूर्वसंस्कार- परिवार संस्कार वश यह प्रबल खोज चल पड़ी श्रीमद् जीवन- महावीर जीवन के बाह्यांतर रूपों की एवं इन "महत् पुरुषों के पंथ पर चलने की महत् पुरुषों का यह पंथ कौन-सा था यह विशद रूप से तो आगे दर्शन करेंगे। परंतु इस स्वयं खोज ने इन दोनों महत् पुरुषों को मूलाधार बनाकर, उन परोक्ष परमपुरुष परमगुरूओं के वर्तमान में प्रत्यक्ष प्रतिनिधिवत् सद्गुरुओं की शोध एवं संग की ओर आगे बढ़ा दिया । "
SR No.032330
Book TitleAntarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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