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________________ Second Proot DL 31-3-2016.3 • महावीर दर्शन - महावीर कथा • १. सर्वाधिक निष्पक्ष सत्यखोजी-सत्यदर्शी सत्पुरष "निर्दोष नरर्नु कथन मानो, तेह जेणे अनुभव्यु" - श्रीमद् राजचन्द्र - जो कि भगवान महावीर के अंतिम लघुशिष्य' रहे हैं,जिस तथ्य के अनेक साक्ष्यों में स्पष्ट साक्ष्य है भगवान के "गणधरवाद" का ही साक्षात् प्रतिरुप गुजराती 'आत्मसिध्धि शास्त्र' की अस्खलित अविच्छिन्न धारा के रुप में, एक ही बैठक में, इस काल में की गई संरचना ।गहन तुलनात्मक संशोधन इन दोनों (गणधरवादआत्मसिध्धि) का नया ही तथ्य, सत्य उजागर करेगा । इसी कृति के रचयिता के 'वचनामृतों' के महावीर जीवन सम्बन्धित अल्प भी चरित्रांकन महावीर जीवन-सम्बन्धित अधिकृत जानकारी देते हैं। ये सारे एकत्रित कर परिशिष्ट के रूप में दिये गये हैं और ये सर्व स्वीकार्य हो सकते हैं, होने चाहिये। श्री कल्पसूत्र, त्रिशष्टिशलाका पुरुष चरित्र, आदि की ये पुष्टि भी करते हैं और अपनी निष्पक्ष, निर्दोष सम्मति भी व्यक्त करते हैं, जिसके अनेक उदाहरण खोजे जा सकते हैं, यथाः महावीर जीवन में माता-पिता की आज्ञा का महत्त्व और यशोदा के पाणिग्रहण युक्त उनका विवाहित जीवन, आदि, जो कि "अविवाहित-का-सा" ही है और श्वेताम्बर-दिगम्बर दोनों आम्नायों के मतवैभिन्यों का निरसन कर सकता है - यदि अनेकांतवाद की दृष्टि-उदारता एवं सरल सत्य-स्वीकार-तत्परता अपनायी जाय । प्रसन्नता की बात है कि कलकत्ता के चारों जैन समाज बीच २००१ में प्रस्तुत "महावीर दर्शन" का यह अभिगम दिगम्बरों ने भी माना। २. तटस्थ, निष्पक्ष, विवेकमय सु-चिंतन के पश्चात् स्वयं के अंतर्ध्यान की गहराई में डूबकर निकाला गया निष्कर्ष - 'जिन खोजा तिन पाईया, गहरे पानी पैठ' एवं निम्न प्रेरक उक्ति के द्वारा प्राप्त : "शुध्ध बुध्ध चैतन्यधन, स्वयंज्योति सुखधाम । बीजं कहिये केटलुं, कर विचार तो पाम ।" (- आत्मसिध्धि 117) (और कितना, क्या, कहें ? गहन चिंतन करने से पायेंगे अपने शुध्ध बुध्ध स्वयंज्योति स्वरूप को एवं परम सत्य को ।) तो प्रायः इन दो आधार पर गतिशील हुई है हम अल्पज्ञों के महावीर-महाजीवन के आधारभूत ग्रंथाधारों की महाजीवन यात्रा । फिर भी वह खुली है अंतर-साक्ष्य से एवं अन्य किसी बाह्य ग्रंथ साक्ष्य से साक्षात् करने, उसे अपनाने । वर्तमानकाल के सभी सुज्ञजनों, महावीर-जीवन के खोजी एवं अधिकृत ज्ञाताओं से विनम्र प्रार्थना है इस सम्बन्ध में अपना अनुभव-चिंतन, अपना अभिनव ज्ञान जोड़ने की ताकि महावीर के महाजीवन को अधिकाधिक समृध्ध, सत्याधिकृत, सर्वस्वीकृत रूप में प्रस्तुत किया जा सके। जैसा कि कई वर्तमान खोजी चिंतकों ने ठीक ही कहा है कि त्रिषष्ठि शलाका पुरुषों के अंतर्गत-समाविष्ट श्री ऋषभदेव से नेमनाथ-पार्श्वनाथ से एवं श्रीराम-कृष्णादि से श्री महावीर चरित्र अधिक समीचीन एवं हमारे जीवनकाल के अधिक निकट होकर हमारी जीवनसाधना के आदर्शरूप है । अस्तु । इस लेखक-संग्राहक अल्पात्मा की पश्चाद्भूमिका :
SR No.032330
Book TitleAntarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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