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________________ Second Proof DL. 31-3-2016 - 30 • महावीर दर्शन - महावीर कथा . (वृद गीतधून) "वीर प्रभु का हुआ निर्वाण, गौतमस्वामी केवलज्ञान ।" "भाते आतम भावना जीव पाये केवलज्ञान रे (२)।" "आतम भावना भावतां जीव लहे केवलज्ञान रे (२)।" ००००० (वाद्य संगीत : नव अरुणोदय संकेत संगीत) (M) आज पच्चीस सौ वर्षों के पश्चात् (विहगवृंद ध्वनि, प्रभात संकेत)- आती है उस चिर महान आत्मा की - भगवान् महावीर की यह आवाज - (घोष)"मित्ती में सव्व भूएस, वैरं मज्झं न केणई।" (सब से मेरी मैत्री, वैर नहीं किसी से) "शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशम्, सर्वत्र सुखी भवन्तु लोकाः ॥" (सर्व विश्वजीव सर्वत्र सर्वथा सुखी हों, अन्यों के उपकारक हों, सर्वजीवों के दोष नष्ट हों ।) (M) आज गूंजती है - तीर्थंकर भगवंत महावीर के मंगलदर्शन की वह "वर्धमान भारती", वह जग-कल्याणी वाणी - (F) जम्बू-नन्दीश्वर के द्वीपों से, भरत-महाविदेह के क्षेत्रों से और मेरु-हिमालय की चोटियों से - (M:घोष) "जे एगं जाणइ, से सव्वं जाणइ । (वाद्य) जो एक को, आत्मा को जान लेता है, वह सब को, सारे जगत को जान लेता है। वीरस्तुति - वीरः सर्व सुरासुरेन्द्र महितो, वीरं बुधा संश्रिताः । वीरेणभिहतः स्वकर्मनिचयो, वीराय नित्यं नमः ॥ वीरात् तीर्थमिदं प्रवृत्त मत्तुलं, वीरस्य घोरं तपो । वीरे श्री, धृति, कीर्ति, कान्ति निचयः । श्री वीर भद्रं दिश। ॥ ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ॥ (30)
SR No.032330
Book TitleAntarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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