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________________ Second Proof DL. 31-3-2016-29 • महावीर दर्शन - महावीर कथा . (F) जब कि एक शब्दहीन घोष उठा : (प्रतिध्वनि पूर्ण, स्पष्ट) “यः सिध्द परमात्मा, स एवाऽहम् ।""जो सिध्द परमात्मा है वही मैं हूँ ...।" (वाद्यसंगीत : करुणतम) - और प्रभु परमशांति, परमपद, परिनिर्वाण को प्राप्त हो गये ! (वाद्य) (गीत) "साँस की अंतिम डोर तक रखी, अखंड देशना जारी । आसो अमावस रात की बेला, निर्वाण की गति धारी ॥" (वाद्यसंगीत) (धून) (घोषयुक्त) "परमगुरु निर्ग्रन्थ सर्वज्ञ देव" (M) (भावपूर्ण) हवामें शंख, वनमें दुन्दुभि और जन-मन में रुदन के अनगिनत स्वर उठे .... प्राणज्योति अनंत ज्योति में विलीन हो गई ... ज्योत में ज्योत मिल गई ... प्रभु अनंतदर्शन, अनंतज्ञान, अनंतवीर्य, अनंत सुखमय, अजर अमर सिध्दलोक के ऐसे आलोक में पहुंच गये कि जहां से कभी लौटना नहीं होता, कभी जन्म-मृत्यु के चक्र में आना नहीं पड़ता - (F+M) (गीत) "या कारण मिथ्यात्व दियो तज क्युं कर देह धरेंगे? . अब हम अमर भये न मरेंगे।" (F) "इस अंधेरी अमा-निशा को बुझ गई महान ज्योति, धरती पर तब छाया अंधेरा, अंखियाँ रह गई रोती ॥" गूंज उठे तब देव दुन्दुभि, लहराई दैवी वाणी : "आनन्द मनाओ ! जग के लोगों । प्रभु ने मुक्ति पाई।" प्रभुद्वारा प्रतिबोध कार्य को प्रेषित उनके प्रधान शिष्य गणधर गौतम स्वामी प्रभु की मुक्ति के बाद जब लौटे तब यह जानकर मोह-राग वश वे टूट पड़े और फूट फूट कर रो उठे - (गौतम विलाप स्वर : करुणतम गम्भीर ध्वनि में) "आप प्रभु निर्वाण गये, रहत नहीं अब धीर हिया । मुझे अकेला छोड़ गये, अब कौन जलाये आत्म दिया ?" पर रोते हुए विरही गौतम को यकायक स्मृति में सुनाई दी भगवन्त की वह अप्रमत आज्ञा(M) "समयं गोयम् । मा पमायए ... । पलभर का भी प्रमाद मत कर हे गौतम !" (प्रतिध्वनि) (F) लौटे वे प्रमादपूर्ण आर्त्तध्यान से ... और तुरन्त ही हुआ उन्हें केवलज्ञान (आनंदमय आनंदसंगीत ध्वनि) (29)
SR No.032330
Book TitleAntarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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