SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Second Proof DL.31-3-2016-22 • महावीर दर्शन - महावीर कथा . (गीत पंक्ति) "रूप पिशाच का लेकर देवता वीर को पीठ बिठाई दिये। नन्हा-सा बहादुर बाल कुमार, उस देव को मुठ्ठी लगाई दिये।" साँप-पिशाच दैत्य और दूसरे प्रसंग में पागल हाथी - सभी को अपने बाल-पराक्रम से कुमार वर्धमान वश करते रहे ... (सूरमंडल) बाल-किशोर-कुमारावस्था बीत चुकी ... युवा आई ... भीतर से वे अलिप्त हैं परन्तु 'भोगावली' कर्म अभी अवशेष हैं, माता-पिता के प्रति भक्ति-कर्तव्य अभी शेष है, यशोदा का स्नेह-ऋण अभी बाकी है (सूरमंडल) और राजकुमार वर्धमान महावीर यशोदा का पाणिग्रहण करते हैं, उस से विवाह करते हैं । यद्यपि दूसरी मान्यतानुसार वे अविवाहित ही रहते हैं। ... इस गृहस्थाश्रम में, वैभवपूर्ण गृहस्थाश्रम में भी वे जीते हैं अपने उस जलकमल-वत् जीवनादर्श के अनुसार - "जल में, कीच में जन्म लेकर भी जैसे जल से कमल अलिप्त (प्रतिध्वनि घोष) रहता है, वैसे ही संसार के बीच रहते हुए भी आत्मार्थी को संसार-वासना से अलिप्त रहना है।" (सूरमंडल) इसी आदर्श के अनुसार भोग को योग की भाँति भुगतकर, बीत रहे उनके गृहस्थाश्रम के दौरान उनके घर पुत्रीरत्न 'प्रियदर्शना' का खेलना और माता-पिता का स्वर्ग सिधारना - इन सभी अनुकूल-प्रतिकूल घटनाओं में भी - महावीर का आत्मचिन्तन निरंतर चलता रहता है.- (प्रतिध्वनि युक्त गीतपंक्ति) "मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ ? कोडहम् ? कोडहम् ? "मैं कौन हूँ ? आया कहाँ से ? क्या स्वरूप है मेरा सही? मैं कौन हूँ?" तीव्रता पकड़ते हुए इस आत्मचिन्तन के प्रत्युत्तर में उन्हें लंबे अर्से से पुकारती हुई वह आवाज (भीतर से) सुनाई देती है, वह आवाज, वह कि जिसमें एक मांग है, एक बुलावा है, एक निमंत्रण है - (प्रतिध्वनि घोष) "जे एगं जाणई, से सव्वं जाणई ।" जो एक को, आत्मा को जान लेता है, वह सब को, सारे जगत को जान लेता है ...। आ, और अपने आप को पहचान, अपने आप को पा ... । (सूरमंडल, दिव्यवाद्यवृंद) और इसे सुन वे तड़प उठते हैं। उनकी छटापटाहट जाग उठती है। इस आवाज का वे जवाब देना चाहते हैं, अपने को खोजना और सदा के लिए पाना चाहते हैं - ना, वैशाली के राजमहल में अपनी इस आत्मा को पाया नहीं जा सकता ... ! (सूरमंडल) (22)
SR No.032330
Book TitleAntarlok Me Mahavir Ka Mahajivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy