SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Dt. 19-07-2018 - 3 Can yo • कीर्ति स्मृति • — • और बंधुओं से यह वचन लेकर, जो कि उसके अंतिम शब्द थे, अपने शरीर को मानों भिन्न करते हुए 'वोसिराकर', उसे सभी स्वजनों के विवेक पर छोड़कर, वह आज सो गया था सदा के लिये ! योगानुयोग से आजका उसका देहविसर्जन का 'ज्ञानपंचमी' का दिन, उसके इस पूज्य अग्रज का जन्मदिन भी था, जिसने उसकी करुणा-अहिंसा - भावना की यह प्रतिज्ञा पूर्ण करवाई थी और 'इस संकल्प- पालन एवं नवकार-गान के श्रवण के कारण उसके जीवन का यह करुणान्त भी एक प्रकार की संतुष्टि के साथ हो रहा था । 7 में अभी कुछ दिन पूर्व ही तो, जैसे उसके जीवनभर के दीन दुःखियों की सेवा के और करुणा के कार्यों की अनुमोदना कर उसे आशीर्वाद दें, शांति-शाता दिलवाने और अपनी भीतरी भावना सुदृढ़-सुस्थिर करने, हिमाचल प्रदेश जाने के बजाय पांच दिन के लिये पधारकर उसके साथ रहे थे करुणा-प्रेम के अवतार एक ओलिया सत्पुरुष । यह परमउपकारक परमपुरुष थे पूज्य गुरुदयाल मल्लिकजी - गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के शांतिनिकेतन के एवं बाद में महात्मा गांधीजी के सेवाग्राम के अंतेवासी । उन्होंने ही तो कीर्ति की सेवा करुणा की कथा दवाई कथा सुनकर जानकर उसकी कलकत्ते की प्राकृतिक चिकित्सालय की डेढ़ माह की अतिगंभीर बीमारी के बीच से दो दो बार मृत्युमुख से बचाकर यहाँ हैद्राबाद पहुँचाया था, माँ और स्वजनों के बीच ढ़ाई ढ़ाई माह के अंतिम काल तक साथ रहने । कलकत्ते में कीर्ति की उनके द्वारा की गई रक्षा, दूर क्षेत्र में रहकर भी मल्लिकजी के द्वारा की गई एक असम्भव-सी अगम निगम की रहस्यमयी कथा है। अब वे स्वयं साक्षात् ही उसके पास पधारकर साथ रहे थे, यह कितना उनका उपकार ! "अहो, अहो श्री सद्गुरु, करुणासिंधु अपार । इस पामर पर प्रभु किया, अहो, अहो उपकार !! ( श्रीमद् राजचंद्रजी : आत्मसिद्धिशास्त्र ) "संत परम हितकारी, जगत मांहि संत परम हितकारी" ( ब्रह्मानंद) ऐसे परम उपकारक, करुणासिंधु सत्पुरुष का जीवनान्त के दिनों में पधारकर सत्संग प्रदान करना और उसके पूर्व कलकत्ते की मृत्युशय्या पर उसे जीवनदान देना यह अद्भुत असम्भव-सी घटना अपने आप में बड़ा मूल्य रखती है और करुणात्मा क्रान्तिकार कीर्तिकुमार के जीवनकार्यों का मूल्यांकन कर उसकी आत्मा को अपने महाप्रयाण के बाद ऊर्ध्वगमन करवाती है । परमपुरुष पूज्य मल्लिकजी के उसे और भी बचाने के अनेक प्रयासों के बावजूद भी आखिर नियति अपना कार्य करती रही और बेशक जीवनान्त में एक मंगल संतृप्ति के साथ, इस करुणात्मा क्रान्तिकार का, अपने स्वप्नों एवं क्रान्त दर्शनों का दर्शन कर सके उसके पूर्व ही महाप्रयाण हो गया... ! एक होनहार कली पूर्ण पुष्परूप में विकसित होने से पूर्व ही मुरझा गई !! कीर्ति की विश्वविदा के समाचार जानकर सर्वप्रथम प्रेमांजलि आई पूज्य गुरुदयाल मल्लिकजी की, अपने अद्भुत प्रेम वचनों से परिपूर्ण : (3) हरिजन आश्रम, अहमदाबाद ११-११-१९५९
SR No.032327
Book TitleKarunatma Krantikar Kirti Kumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy