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________________ | प्रकरण-१ Chapter-1] ( प्रथम प्रयाण का प्रारंभिक दर्शन..... ) ज्ञान पंचमी : गुरुवार : 5 नवम्बर 1959 का पावन दिन । प्रातःकाल से पंच परमेष्ठी परमगुरु-प्रतीक नमस्कार महामंत्र की अखंड धून चलाई जा रही थी एक धारावत् । धूपसुगंध की धूम्रसेर के बीच, इस धून-घोष के मध्य एक क्रान्तिकार करुणात्मा लेटा हुआ था और अपने स्वजनों से, इस दुनिया से, विदा लेने वह सुदीर्घरूप से अंतिम साँसें मिला रहा था । सर उसका अपनी ममतामयी माँ की गोद में था । उसी वत्सल गोद में, जिससे उसने जम लिया था, परंतु कितने ही बरसों से अपने क्रान्तिकार्य की धुन में, कहाँ कहाँ अपनी क्रान्तियात्राएं करता हुआ, दूर दूर बसता रहा था !... महत्पुरुषों की करुणा-कृपा से, कम से कम अपने जीवनांत की इस बेला में, कुछ दिनों से, इस वात्सल्यमयी गोद की छाया में वह आ पाया था- अंत में कालवत् बनी हुई अपनी 'क्रान्ति-कार्य-भूमि कलकत्ता' से हैद्राबाद तक। अभी तो आयु ही उसकी क्या थी? केवल २५-२६ वर्ष ! भर युवावस्था !! पर इस अल्पायु में भी उसने अपनी अल्पशिक्षा के बावजूद महा-महान कार्य संपन्न किये थे !!! - ऐसे महाकष्टसाध्य 'करेंगे या मरेंगे' के संकल्प से बद्ध विराट क्रान्ति कार्य कि जिनकी कोई केवल कल्पना ही कर सकता है। भारत की आज़ादी के दीवाने ऐसे सारे ही क्रान्तिकारी उसके आदर्श थे, आराध्य थे, देश की क्रान्ति-समृद्धि-खुशहाली रूप दूसरी आज़ादी के आर्षदृष्टा थे । 'सर्वेऽत्र सुखिनो सन्तु । और 'शिवमस्तु सर्वजगतः' की सर्वोदयी भावनाएँ उसके जीवनमंत्र रूप थीं। भारत के उक्त वीर शहीदों की उंगली उसने पकड़ी थीं। उनमें से एक ऐसे भारत-माँ के लाडले लाल शहीद भगतसिंह के अनुगामी-शिष्य ऐसे सरदार पृथ्वीसिंह 'आझाद' - 'स्वामीराव' का तो वह 'प्यारा', प्रेमपात्र, अंतेवासी बन चुका था। फिर भारत में, आझाद परंतु भ्रष्टाचार से भरे भारत में, वह हिंसक क्रान्ति के भी 'उद्धारक-दिखते स्वप्न' निहारने लगा था । सद्भाग्य से, इसी समय अपने अग्रज द्वारा इंगित विनोबाजी-बालकोबाजी-जयप्रकाशजी की अहिंसक क्रान्ति के मार्ग का ओर वह मुड़ने लगा । इस क्रान्तिमार्ग में उसकी जन्मजात जैनकुल की अहिंसा और करुणाभावना भी विकसित होने लगी थी। जीवन के अनेक घोर भयंकर कष्टों और अग्निपरीक्षापूर्ण अनुभवों के बाद, निष्कर्ष रूप में उसने अपनी करुणामयी क्रान्ति हेतु एक अनोखा मार्ग ही अपनाया था । सरदार पृथ्वीसिंह आझाद के सान्निध्य में जीवन-निर्माणात्मक सथरा-भावनगर-गुजरात के तालीम-वास के पश्चात्, अग्रज के अनुरोध पर उसे क्रान्ति के उच्च मार्ग की खोज की अभीप्सा जगी । इस हेतु नूतन क्रान्ति के युगदृष्टा आचार्य विनोबाजी के पास अहिंसक क्रान्ति-मार्ग की विशद चिंतना करने उरो
SR No.032327
Book TitleKarunatma Krantikar Kirti Kumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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