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________________ कीर्ति-स्मृति . Dt. 19-07-2018-30 कीर्ति के इन जादुभरे चुंबकीय शब्दों में एक बड़ी ताकत थी । "हम कसम खाते हैं कि हम बेशक यह सब देंगे"-कुछ लोगों ने एक साथ उत्तर दिया । एक व्यक्ति तो अपनी प्रतिज्ञा में और भी आगे बढ़ गया और खड़े होकर कह उठा : __"क्या मैं अपना खून निकालकर दूं और उससे लिख दूँ ?" उसने अपना चाकु तक निकाला इसके लिये.... ३६. उनके उत्साह और दृढ़ता से आनंदित होकर कीर्ति ने उसे रोका, उसे गले लगाया और हरएक से कहा- Lemove2 . ... "आप लोगों के समर्पण भरे निर्धार से मैं बेहद खुश हूँ.... इस जोम-जुस्से को आप सदा बनाये रखेंगे । अब मैं आपके कार्य का नकशा बनाये देता हूँ।": यह कहते हुए उसने अपने फैक्ट्री-कार्य और क्रान्तिकार्य की दो प्रकार की आयोजना और नीतिरीति समझाई। अपने क्रान्ति-कार्य के मिशन में उपर्युक्त सारी अपेक्षाओं-आवश्यकताओं के उपरान्त प्रथम तो उसने बिलकुछ प्रसिध्धि-विहीन गुप्त भूगर्भ कार्य करने की संकल्पित-समर्पित आवश्यकता सारी समझाई । वास्तव में यह सारे क्रान्तिकारियों और अधिकांश स्वातंत्र्य सेनानियों की नीति-रीति रही है, जिनसे कीर्ति ने अपने बचपन से ही प्रेरणा पाई थी। अपनी इस अनिवार्य आवश्यकता को मज़बूत करने के बाद उसने बारीकी से उन सब के प्रत्येक रात्रि के भूगर्भकार्यों का प्लान तैयार किया । उसके सारे समर्पित कामगार दिन में अपने द्वारा उत्पादन-कार्य में सख्त रूप से लगे रहते थे । रात में उपर्युक्त जोखिमभरे और असामान्य प्रकार के पूर्वायोजित क्रान्तिकार्य किये जाते थे । हालाँकि इन सारी की सारी हलचलों की हकीकतें और इतिहास सारा एकत्र नहीं हो पाया है-कीर्ति के सद्भावी और सहायक रहे हुए इस लिखनेवाले बंधु के द्वारा भी - तथापि थोड़ी ही रोमांचक सत्यघटनाओं को प्राप्त किया जा सका है। ऐसी प्राप्त घटनाओं का वर्णन करने से पूर्व, उसकी क्रान्तिकारी गुप्त भूगर्भ प्रवृत्तियों विषयक उपर्युक्त प्राथमिक नीति-रीतियों की जानकारी पूरी कर लें । ये सारी अनेकविध प्रकार की थीं। प्रथम थी अन्याय-सितम सहनेवाले और अपने जुल्मी, शोषक, बेइमान सेठों, पूंजीपतियों द्वारा सताये गये लोगों को मदद करने की । ये गरीब सितम-सहनेवाले बंगाल के विविध भागों से एवं निकटवर्ती बिहार से आये हुए थे । कुछ लोगों की जमीनें ज़मीनदारों द्वारा लूट कर हड़प ली गईं थीं, कुछ को गुलाम बनाया गया था, कुछ की प्यारी निरीह मासूम पुत्रियों का अपहरण कर दुरुपयोग किया गया था और कलकत्ता के अंधेरे 'रेड लाइट' हिस्सों में लहू के व्यापार द्वारा वेश्यागृहों तक बेचा गया था और बेचा जा रहा था ! इन भयंकर अमानवीय कुकर्मों का स्वयं का अवलोकन और पता कीर्ति को था ही, परंतु जब वह ऐसी करुणतम कथाएँ उसके सन्मुख आनेवाले सचमुच में भुक्तभोगी दुःखियों से सुनता था तब वह द्रवित हो जाता था, उसकी करुणा-संवेदना भरी आखों (30). .
SR No.032327
Book TitleKarunatma Krantikar Kirti Kumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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