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________________ Dt. 19-07-2018 23 जहाँ वह मोटरकार ड्राइवर के रूप में कार्य कर रहा था । वह मेरे परिचय में भी तब आया था जब उसे हैदराबाद से मद्रास कार पहुंचाने जाना था और जब वह उसी कार में मेरी भी सहयात्रा के दौरान रेपल्ली-टेनाली विजयवाड़ा के आंध्र प्रदेश में ज्ञानयोगिनी चिन्नम्मा माताजी का स्थान सर्वप्रथम खोज निकालकर पहली बार वहाँ जाने में निमित्त रूप बना था - बड़े काम का 'निमित्त' । वह, कीर्ति और मैं - हम दोनों बंधुओं के प्रति बड़ा ही समर्पित रहा था। कलकत्ते से आंध्र अपने खेत वतन पर लौटकर भी कीर्ति के मिशनरूप क्रान्ति कार्य में दूर से भी कुछ सहायता करना चाहता था । कीर्ति-स्मृति कीर्ति से उसका पत्रव्यवहार चलता रहा कीर्ति ने अपने एक पत्र में आत्मीयता और निखालसता -से रेड्डी को अपनी उपर्युक्त ' संपन्नतावाद - RICHISM' की अभिनव प्रकार की क्रान्तिकार्य की योजना के विषय में और उससे सहयोग पाने के बारे में लिखा : "बैठा हूँ मैं तेरे दर पे, तो कुछ करके ही उठूंगा । बना दूँ जन्नत जहाँ पे, या लब्ज़े जन्नत मिटा दूंगा ।" कलकत्ता ४-८- १९५८ "मेरे प्रिय दोस्त एल. सुब्बा रेड्डी, तुम्हारा २९-७-१९५८ का पत्र मिला, जिसमें तुम ( वहाँ ) काम के लिये बुला रहे हो। परंतु मैं कलकत्ता में ही 'करेंगे या मरेंगे' करना चाहता हूँ। मतलब कि, मुझे यहाँ ही पैसे कमाने हैं और बाद में मैं व्यापार प्रतिष्ठान और उद्योग लगाना चाहता हूँ, जिसके द्वारा मैं मज़दूरों और लोगों को ऊपर उठाना चाहता हूँ । मैं इस दुनिया को दिखाना चाहता हूँ कि अगर आप दूसरों के लिये कमाओगे, तो दूसरे आपके लिये कमायेंगे। मैं धनिक बनना चाहता हूँ और सभी को धनी बनाना चाहता हूँ। मैं सुखी बनना चाहता हूँ और सभी को सुखी बनाना चाहता हूँ धनिक लोग धनिकों के लिये हैं और सरकार धनिकों के लिये है, (जब कि ), मैं धनिक होना चाहता हूँ और सभी धनिक बनें यह चाहता हूँ। यह मेरा 'संपन्नता - वाद' RICHISM है । कलकत्ता भारत का सब 'से बड़ा शहर है, और इसलिये मैं मेरा 'संपन्नतावाद' RICHISM यहीं से आरम्भ करना चाहता हूँ । परंतु अभी इस समय 'संपन्नतावाद' RICHISM का (यह) चिंतक बहुत ही गरीब है, इस लिये अगर इस काम के लिये तुम्हारे पास धन हो, और (अगर ) तुम्हें उसकी जरूरत न हो और तुम भेज सकते हो, तो तुम भेजो। परंतु अगर तुम मेरे सच्चे दोस्त हो तो कृपा करके मुझे सहाय करने के लिये अपने आप को कष्ट में नहीं रखना। अगर तुम्हारे पास सारी सुविधा, सारे स्त्रोत सारे इंतज़ाम हों तभी तुम्हें भेजने की अनुमति है - सौ रुपये और कोई भी रकम जो तुम भेज सको मनी ऑडर से । इसलिये अगर तुम मनी आर्डर भेजो तो कृपा करके पी.एच. देसाई के नाम से C/o. वी. नाग्रेचा एन्ड कं. 29/1, आर्मेनियन स्ट्रीट, कलकत्ता-१ के पते से भेजना । " (23) "पी. एच. देसाइ अर्थात् हमारे मित्र श्री प्रेमचंदभाई, वह भी 'रोड इन्स्पेक्टर' के रूप में मेरे साथ मेरे संपन्नतावाद - RICHISM से जुड़ा हुआ है। हम दोनों यहाँ सुखी हैं और प्रभु से प्रार्थना करते
SR No.032327
Book TitleKarunatma Krantikar Kirti Kumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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