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________________ और गावी शालाएँ जहाँ साथ हो, ऐसे घर को चुल्ही कहते हैं और यह अशुभ माना जाता है। इस प्रकार अनेक प्रकार के घर बनते हैं। इसे जानने के लिए समरांगण तथा राजवल्लभ आदि शिल्पग्रंथ देखें। शांतनादि घरों का स्वरूप केवल दो शाला (कमरें) वाले घर को शांतन नाम का घर कहते हैं। जिस घर में उत्तराभिमुख शांतिन हस्तिनीशाला हो, उसे शांतिन नामक घर कहेंगे। पूर्वाभिमुख महिषीशाला वाला घर 'शान्तिद' घर है। दक्षिण दिशा के मुखवाली गावी शाला वाला घर 'वर्धमान' घर है और पश्चिमाभिमुख छागी शाला वाला घर कुर्कुट घर है। शान्तन 1 शान्तिद 2 बर्द्धमान 3 कुकुट 4 स्वस्तिक 1 बर्द्धन 3 1 11. EL शान्त 1 हर्षणा 2 कराल 4 . विपुल 3 LLL [1] [ न 4JL - 11 - 111. वित्त 1 धन 3 कालदंड 4 JU JLIT 774 शांतनादि दोशाला वाले चार घरों के मध्य में षइ-दारु हो और द्वार के आगे एक एक अलिंद हो तो स्वस्तिक आदि चार प्रकार के घर बनते हैं। शांतन नामक घर में षइदारु और मुख के सामने एक अलिंद हो तो यह 'स्वस्तिक' घर कहलायेगा। शांतिव घरके मध्य में षइदारु और आगे एक अलिंद हो तो यह 'हैस' नामक घर है। वर्षमान घर के मध्य में षइदारु और आगे एक अलिंद हो तो यह 'वर्द्धन' घर कहलायेगा। कुर्कुट घर के मध्य में षइदारु और द्वार के सामने एक अलिन्द हो तो इसे 'कर्पूर' नामक घर कहेंगे। जैन वास्तुसार 37
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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