SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शांतन आदि द्विशाल घरों के नाम ___1. शान्तन, 2. शांतिद, 3. वर्धमान, 4. कुक्कुट, 5. स्वस्तिक, 6. इंस, 7. वर्धन, 8. कबूंर, 9. शान्त, 10. हर्षण, 11. विपुल, 12. कराल, 13. वित्त, 14. चित्त (चित्र), 15. धन, 16. कालदंड, 17. बंधुद, 18. पुत्रद, 19. सर्वांग, 20. कालचक्र, 21. त्रिपुर, 22. सुंदर, 23. नील, 24. कुटिल, 25. शाश्वत, 26. शास्त्रद, 27. शील, 28. कोटर, 29. सौम्य, 30. सुभद्र, 31. भद्रमान 32. क्रूर, 33. श्रीधर, 34. सर्वकामद, 35. पुष्टिद, 36. कीर्तिनाशक 37. श्रृंगार, 38. श्रीवास, 39. श्रीशोभ, 40. कीर्तिशोभन, 41. युग्मशिखर (युग्मश्रीधर) 42. बहुलाभ, 43. लक्ष्मीनिवास, 44. कुपित, 45. उधोत, 46. बहुतेव, 47. सुतेज, 48. कलहावह, 49. विलास, 50. बहुनिवास, 51. पुष्टिद, 52. क्रोधसन्निभ, 53. महंत, 54. महिन, 55. दुःख, 56. कुलच्छेद, 57. प्रतापवर्द्धन, 58. दिव्य, 59. बहुदुःख, 60. कंठछोटन, 61. जंगम,62. सिंहनाद 63. हस्तिज, 64. कंटक इस प्रकार 6 4 घरों के नाम हैं। अब इनके लक्षण और भेद कहते हैं। दो शाला (कमरें) वाले घरों का स्वरूप 'राजवल्लभ' में इस प्रकार बताया गया घर बनानेवाली भूमि में लंबाई और चौड़ाई के तीन भाग करने से नव भाग होते हैं। इसमें मध्य भाग को छोड़कर बाकी के आठ भागों में से दो-दो भागों की शाला (कमरे) बनाने चाहिये और बाकी की भूमि को खाली छोड़ दिया जाना चाहिये। इस प्रकार चारों दिशाओं में चार प्रकार की शाला बनती है। __ दक्षिण और अग्निकोण के भाग में दो शाला कमरे हों और मुख उत्तर दिशा में हो तो उसे हस्तिनी शाला कहा जायेगा। नैऋत्य और पश्चिम दिशा में हो तो यह महिषी शाला है। वायव्य और उत्तर दिशा के भाग में दोशाला हो और मुख अगर दक्षिण दिशा में हो तो यह गावी शाला है और ईशान और पूर्व दिशा के भाग में दो शाला हो और अगर यह पश्चिमाभिमुख हो तो इसे छागीशाला कहेंगे। __हस्तिनी और महिषी ये दो शालाएँ एक साथ हो, ऐसे घर का नाम 'सिद्धार्थ' है और यह अपने नामानुसार फलदायक सिद्ध होता हैं। महिषी और गावी ये दो शालाएँ अगर एक साथ हों तो इसे यमसूर्य घर कहेंगे। यह घर मृत्युकारक है। गावी और छागी शालाएँ साथ हो, ऐसे घर का नाम दंड है और धन हानि करने वाला है। हस्तिनी और छागी ये दो शालाएँ साथ हो, ऐसे घर का नाम काँच है और यह हानिकारक है। हस्तिनी जन-जन का उ6वास्तस जैन वास्तुसार
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy