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________________ परिभाषा कमरे का अर्थ शाला है। जिसमें दो शालाएँ (कमरे) हों उसे घर कहते हैं। गइ अर्थात् अलिन्द (अहाता)। जहाँ एक दो अथवा तीन अलिंद हो उसे पटशाला कहते हैं। पटशाला के द्वार की दोनों ओर जाली (झरोखे) युक्त दीवार तथा मंडप होते हैं। पीछे दाहिनी और बांई ओर अलिंद होता है उसे गुंजारी कहते हैं। स्तंभ का नाम षट्दारु है। स्तंभ के ऊपर जोलंबा बड़ा लकड़ा रखा जाता है उसे भारवट कहते हैं। पीढ़, कड़ी और धरण ये तीनों एक ही शब्द के पर्यायवाची हैं। कमरे से ले कर पटशाला तक मुख्य घर समझें और बाकी रसोईघर आदिजो हैं ये मुख्य घर के आभूषणरुप हैं। घरों के भेद का कारण कमरे (शाला) अलिंद, गति, गुंजारी, दीवार, पट्ट स्तंभ, जाली और मंडप आदि के भेदों द्वाराघरों के अनेक प्रकार होते हैं। जिस प्रकार चौदह गुरु अक्षरों के लघु-गुरु के भेद के द्वारा प्रस्तार होता है, उसी प्रकार शाला, अलिंद आदि के भेद द्वारा सोलह हजार तीन सौ चौरासी प्रकार के घर बनते हैं। अतः आधुनिक समय में जो भी "ध्रुव" आदि तथा "शांतन" आदि घर हैं उनके नाम आदिएकत्रित करके उनके लक्षण और चिह्नों का मैं (ठक्कुर फेरु) वर्णन करता हूँ। ध्रुव आदि घरों के नाम ध्रुव, धान्य, जय, नंद, खर, कांत, मनोरम, सुमुख, दुर्मुख, क्रूर, सुपक्ष, धनद, क्षय, आक्रंद, विपुल और विजयये सोलह प्रकार के घर हैं। प्रस्तार विधि चारगुरु अक्षरों का प्रस्तार करना हो तो प्रथम पंक्ति में चारों अक्षर गुरु लिखें। बाद में दूसरी पंक्ति में प्रथम गुरु अक्षर के नीचे एक लघु अक्षर लिखकर बाकी उपर लिखे अनुसार लिखें। बाद में तीसरी पंक्ति में उपर के लघु अक्षर के नीचे गुरु और गुरु अक्षर के नीचे लघु अक्षर लिख कर बाकी उपर लिखे अनुसार लिखें। इस प्रकार सब अक्षर लघु बन जाय तबतक बार बार यह क्रिया करें।लघु अक्षर के लिये (1) और गुरु अक्षर के लिये (5) ऐसा चिह्न करें। विशेष नीचे प्रस्तार में देखें - 1ssss | 55515 | 95551 | 13551 1 | 21 SSS 61515 | 10 1551 | 14 15 11 351ss 75 115 115151 155111 41155 | 8 1 1 15 | 12 1151 | 16 1 1 11 | जैन वास्तुसार
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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