SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हुई। इन दोनों का गुणन करने से 177x127 = 22479 क्षेत्रफल हुआ। क्षेत्रफल को आठ से विभाजित करें तो 22479 / 8 तो शेष 7 रहते हैं। तो सातवाँ गज आय समझे। घर का नक्षत्र निश्चित करने के लिये क्षेत्रफल को आठ से गुणित करें - 22479 x 8 = 179832 - इसे 27 से विभाजित करने से 12 शेष रहते हैं, तो बारहवाँ उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र है। घर की भुक्त राशि जानने के लिये घर का उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र जो बारहवाँ है उसे 4 सेगुणित करने से 48 मिलते हैं। इसे नवसे विभाजित करने सेलब्धि 5 मिली। तो घर की राशि पाँचवीं अर्थात् सिंह राशि है। व्यय जानने के लिये घर का नक्षत्र उत्तरा फाल्गुनी जो बारहवाँ है उसे आठ 8 से विभाजित करने से 4 शेष रहते हैं। यह आय के अंक से कम है अतः यक्ष व्यय हुआ। __ अंश जानने के लिए घर के क्षेत्रफल में जिस राशि का घर उस राशि के अक्षरों की संख्या को जोड़ दें।मानों विजय नाम का घर है तो उसके वर्णाक्षर तीन हैं उसमें व्यय का अंक 4 मिलाने से 22479 + 3 + 4 = 22486 हुए। इस संख्या को तीन से विभाजित करें तो शेष 1 मिलेगा। अर्थात् इंद्रांश हुआ। तारा जानने के लिए घर के नक्षत्र उत्तरा फाल्गुनी से गृहस्वामी के नक्षत्र रेवती तक गिनने से 16 की संख्या मिलती है। इस में से 9 घटाने पर 7 शेष रहते हैं तो सातवीं तारा समझें। आय आदि का अपवाद “विश्वकर्मा प्रकाश" में इस प्रकार बताया गया है - जिस घर की लंबाई 11 जौ से अधिक 32 हाथ तक हो ऐसे घर में तो आय व्यय आदि का विचार करना चाहिए, किंतु 32 हाथ से अधिक लंबाई वाले घर हो उनमें आय-व्यय आदि का विचार करना आवश्यक नहीं है तथा जीर्ण मकान का पुनरुद्धार करते समय भी आय-व्यययामास शुद्धि आदि का विचार करना आवश्यक नहीं है। "मुहूर्त मार्तण्ड" में भी कहा है - जो घर बत्तीस हाथ से अधिक लंबा हो, चार द्वारवाला हो, घास का हो तथा अलिन्द नियूंह (मादल) इत्यादि ठिकानों के लिये आय-व्यय आदि का विचार ने करें। इसी प्रकार घास का घर बनाना हो तो किसी भी मास में किया जा सकता है। घर के साथ मालिक की शुभाशुभ लेनदेन का विचार जिस प्रकार ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कन्या और वर का परस्पर प्रेमभाव देखा जाता है उसी प्रकार घर और घर के स्वामी की लेनदेन आदि का विचार *योनि, गण, राशि और नाडीवेध द्वारा अवश्य करना चाहिए। *योनिगण राशि नाडीवेध आदि का खुलासा प्रतिष्ठा संबंधी मुहूर्त के परिशिष्ट में देखें। जन-जन का उ6वास्तह जैन वास्तुसार
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy