SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ · मुंज का धागा, 4. सूत्र का धागा, 5 अवलंब ( ओळंबा), 6. समकोण, 7. रेवल (साधणी), 8. विलेख्य । ये शिल्पी के आठ प्रकार के सूत्र हैं । घर आदि की आय लाने की त नींव के ओसार की भूमि को छोड़कर बाकी के ओसार के मध्य भाग की भूमि की लंबाई चौड़ाई को गृहस्वामी के हाथों से नापकर दोनों का गुणन करें। जो गुणनफल मिले इसे क्षेत्रफल समझें । क्षेत्रफल को आठ से विभाजित करने से जो शेष बचे उसे ध्वज आदि आय समझें । "राजवल्लभ” में कहा है कि पलंग, आसन और घर इत्यादि में ओसार को छोड़कर मध्य में रही हुई भूमि को नापकर आय लायें, किंतु देवमंदिर या मंडप आदि में ओसार सहित भूमि नाप कर आय लाना चाहिए । आठ आय के नाम : ध्वज, धूम, सिंह, श्वान, वृष, खर, गज और काक ये आठ आय के नाम हैं। ये पूर्वादि दिशा में सृष्टिक्रम से अर्थात् पूर्व में ध्वज, अग्नि कोण में धूम, दक्षिण दिशा में सिंह, इत्यादि आठों दिशाओं में क्रम से रहते हैं । वे अपने नामों के अनुसार फल देनेवाले हैं। * आय चक्र * 5 2 3 4 6 7 8 संख्या 1 आय ध्वज धूम सिंह श्वान वृष खर गज ध्वांक्ष दिशा पूर्व अनि दक्षिण नैऋत्य पश्चिम वायव्य उत्तर ईशान आय के अनुसार द्वार की समझ घर का आय अगर ध्वज आये तो पूर्व आदि चारों दिशाओं में द्वार रखे जा सकते हैं। सिंह आय आये तो पश्चिम दिशा को छोड़कर पूर्व, उत्तर और दक्षिण इन तीनों दिशाओं में द्वार रखे जा सकते हैं। वृषभ आय आये तो पूर्व दिशा में द्वार बनाना चाहिए। और गज आय आये तो पूर्व एवं दक्षिण दिशा में द्वार रखे जा सकते हैं । एक आय के स्थान पर दूसरा आय आ सकता है या नहीं? इस प्रश्न का हल "आरंभसिद्धि" में दिया गया है : सर्व आय के स्थान पर ध्वज आय दी जा सकती है। सिंह आय के स्थान पर ध्वज, गज आय के स्थान पर ध्वज अथवा सिंह में से कोई भी एक, वृष आय के स्थान में ध्वज, सिंह अथवा गज इन तीन में से कोई भी आय दी जा सकती है । सारांश यह है कि सिंह आय जहाँ देना है उस स्थान में सिंह आय न मिले तो ध्वज दिया जा सकता है। - जैन वास्तुसार 30
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy