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________________ चौबीस पर्व अंगुल अथवा छत्तीस कर अंगुल की एक कंबिका होती है - (गज-24 इंच) आठ आड़ेजव की एक पर्वअंगुल समझें। देवमंदिर, राजमहल, तालाब, गढ़ और वस्त्र - इन सब की भूमि का नाप गज से करना चाहिए। सामान्य घर का नापगृहस्वामी के हाथ से करना चाहिए। "समरांगण सूत्रधार" आदि शिल्पग्रंथों में तीन प्रकार के ये गजमाने गये हैं. आठ आड़े जव का एक अंगुल, ऐसे चौबीस अंगुल का एक गज - यह ज्येष्ठ गज है। सात आड़े जव का एक अंगुल और ऐसे चौबीस अंगुल का एक गज - यह मध्यम गज है।छे आड़े जव का एक अंगुल - ऐसेचौबीस अंगुल का एक गज- यह कनिष्ठ गज है। गज में तीन तीन अंगुल की दूरी पर एक एक पर्व रेखा करें। ऐसी पर्व रेखाएँ आठ होंगी। प्रत्येक पवरखा पर फूल का आकार बनायें। चौथी पर्व रेखा पर गज का मध्यमाग समझें। मध्यभाग के आगे के पाँचवें अंगुल के दो भाग दो भाग, आठवें अंगुल के तीन भाग और बारहवें अंगुल के चार भाग करें। (वर्तमान काल में गज = 24 इंच = 2 फीट समझें) गज के नव देवताओं के नाम गज के प्रथम छोर का देव रुद्र, प्रथम फूल का देव वायु, दूसरे फूल का देव विश्वकर्मा, तीसरे फूल का देव अग्नि, चौथे फूल का देव ब्रह्मा, पाँचवें फूल का देव यम, छठे फूल का देव वरुण, सातवें फूल का देव सोम और आठवें फूल का देव विष्णु है। इनमें से कोई भी देव अगर शिल्पी के हाथों द्वारा गज उठाते समय दिखाई दे तो अनेक प्रकार के अशुभ फल देता है। अतः नवीन गृह निर्माण आरंभ करते समय गज को फूलों के मध्य भाग से उठाना चाहिए। उठाते समय अगर गज हाथों में से गिर जाय तो कार्य में विघ्न आता है। __ गज को रुद्र और वायु देव के मध्य भाग से उठाया जाय तो धनप्राप्ति और कार्यसिद्धि होती है। वायु और विश्वकर्मा देव के मध्य भाग से उठाया जाय तो कार्य सुचारु रुप से पूर्ण होता है। अग्नि और ब्रह्मा देव के मध्य भाग से उठाया जाय तो पुत्र की प्राप्ति और कार्य सिद्धि होती है। ब्रह्मा और यम देव के मध्य भाग से अगर गज को उठाया जाय तो शिल्पी का विनाश होता है। यम और वरुण देव के मध्य भाग से उठाया जाय तोमध्यम फलदायक होता है। वरुण और सोम देव के मध्य भाग उठाने से मध्यम फल की प्राप्ति होती है। सोम और विष्णु के मध्य भाग से उठाने से अनेक प्रकार की सुख समृद्धि होती है। शिल्पी के आठ प्रकार के सूत्र (साधन) सूत्रों के ज्ञाता सूत्रधारों ने आठ प्रकार के सुत्र कहे हैं : 1. दृष्टि सूत्र, 2. गज, 3. जैन वास्तुसार
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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