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________________ अक्षरवाले भाग में शल्य है ऐसा समझें। अगर उपर्युक्त नव अक्षरों में से कोई भी अक्षर प्रश्न में न आये तो भूमि को शल्य - रहित समझें । परंतु अगर प्रश्न का अक्षर "ब" आये तो पूर्व दिशा की भूमि के भाग में डेढ़ हाथ की गहराई में मनुष्य का शल्य ( हड्डियाँ आदि) है ऐसा समझना चाहिये। अगर यह शल्य (निकाला न जाय और) जमीन में रह जाय तो गृहस्वामी की मृत्यु होगी । प्रश्न का अक्षर "क" आये तो अग्नि कोण में भूमि में दो हाथ की गहराई में गधे का शल्य रहेगा, जिसके रह जाने से राजा का भय बना रहेगा । प्रश्नाक्षर अगर “च” आये तो भूमि के दक्षिण भाग में कमर के बराबर गहराई में मनुष्य का शल्य समझें। इस के रह जाने से गृहस्वामी की मृत्यु होती है। प्रश्नाक्षर “त” आने पर नैऋत्य कोण में भूमि के अंदर कुत्ते का शल्य समझना चाहिये। इस के रह जाने से संतान हानि होगी अर्थात् गृहस्वामी संतानसुरव से वंचित रहेगा । प्रश्नाक्षर "ए" आने पर पश्चिम दिशा की भूमि के भाग में दो हाथ नीचे बालक का शल्य समझना चाहिये और उसके रह जाने से गृहस्वामी को विदेश में रहना पड़े अर्थात् वह उस घर में सुखपूर्वक निवास न कर सके। प्रश्न में "ह" अक्षर आये तो वायव्य कोण की भूमि में चार हाथ नीचे अंगारे हैं ऐसा समझें, जिस के रह जाने से मित्रों संबंधीजनों का विनाश हो सकता है । प्रश्न का अक्षर “स” आये तो उत्तर दिशा में भूमि के अंदर कमर के बराबर नीचे ब्राह्मण का शल्य समझें। इस के रह जाने से गृहस्वामी दरिद्र रहता है। प्रश्नाक्षर "प” आये तो ईशान कोण में डेढ़ हाथ नीचे गाय का शल्य समझना चाहिये। इसके रह जाने नाश होता है । प्रश्नाक्षर “ज” आने पर भूमि के मध्य भाग में छाती के बराबर नीचे अधिक क्षार, कपाल (भाल), केश आदि अनेक प्रकार का शल्य समझना चाहिये। इसके रह जाने से गृहस्वामी की मृत्यु होगी । ऊपर जो कहा गया है उसके अनुसार अथवा और किसी प्रकार का शल्य दिखाई पड़े तो उन सब को दूर कर के भूमि को शुद्ध करें। तत्पश्चात् वत्स का शुभ बल देखकर मकान आदि बनाना चाहिये । “विश्वकर्माप्रकाश” अनुसार पानी अथवा पत्थर निकलने तक अथवा एक पुरुष प्रमाण खोदकर शल्य को निकाल देना चाहिये और भूमि को शुद्ध करना चाहिये। इस भूमिशुद्धि के पश्चात् उस भूमि पर मकान आदि बनाने का आरंभ करना चाहिये । 3. भवन, मंदिर आदि बनवाने की भूमि में 24 चौबीस अंगुलि प्रमाण नाप का गड्ढ़ा खोदें। उसमें से निकलनेवाली मिट्ठी से पुनः उस गड्ढे को भर दें। अगर ऐसा करने जैन वास्तुसार 17
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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