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________________ सर्वप्रथम तो जिस भूमि पर भवन, प्रासाद, मंदिर, मकानादि निर्मित करना हो उसकी शुद्धि, परीक्षा और शांति - सुख-समृद्धि प्रदान करने की क्षमता देखी जाती है। इस हेतु निम्न उपाय अनुभवी जनों एवं ग्रंथों ने दर्शाय हैं : इस लघु - परीक्षण में - 1. प्रस्तावित भूखंड पर गाय को लाकर छोड़ा जाय। वहाँ पर यदि घास ऊगा हुआ हो तो उसे चरने दिया जाय - संभवतः पूरा दिन अथवा कई दिनों तक । उस जगह आखिर अगर वह गाय बैठ जाय तो उस भूमि को शुभदाता - अच्छी समझी जाय । 2. प्रस्तुत भूखंड की शुद्धि- परीक्षा करने के लिये कि उस के अंदर अस्थिपिंजर, हड्डियाँ आदि “ शल्य” गड़े हुए न हों और हों तो उन्हें उखाड़ निकालने के लिये जानकारी प्राप्त करने के लिये अनुभूत और शास्त्रोक्त तरीके हैं। शल्यशोधन एक प्रमुख तरीका है - इस सरस्वती यंत्र में किसी भूमि पर भवन / मंदिर बनवाने की भावना हो तो भूमि-: - शल्य परीक्षा बतलाई गई है । * सरस्वती यंत्र * ईशान सर्वोच्च प्राथमिक महत्त्व भूमि परीक्षा : भूमि चयन : भूमि शुद्धि वायव्य प जन-जन का उत्तर स ज च दक्षिण ह ए त पूर्व ब क वास्तुसार ईशान प 16 उत्तर स पूर्व ब ज अग्नि क पश्चिम नैऋत्य विधि : प्रस्तावित भूमि के कोष्ठक में दर्शाये अनुसार नव भाग करें। फिर उन नव भागों में पूर्वादि आठ दिशाओं के क्रम से और एक मध्य में ऐसे "ब क च त ए ह स ष और ज (य)" - नव अक्षर क्रम से लिखें। अब “ॐ ह्रीं श्रीं ऐं नमो वाग्वादिनि ! मम प्रने अवतर अवतर । " इस मंत्र के द्वारा कलम को (अथवा लिखने की 'खड़ी' - चौक को ) अभिमंत्रित करके कन्या के हाथ में देकर उसके (द्वारा) पास कोई अक्षर लिखवायें या बुलवायें । अगर ऊपर लिखित नव अक्षरों में से कोई एक अक्षर वह लिखे या बोले तो उस दक्षिण च वायव्य पश्चिम नैऋत्य ह ए त
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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