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________________ वर्णानुकूल भूमि श्वेतवर्ण की भूमि ब्राह्मण के लिये, लाल वर्ण की भूमि क्षत्रिय के लिये, पीले वर्ण की भूमि वैश्य के लिये और काले वर्ण की भूमि शूद्र के लिये है। मिट्टी के इन वर्गों के अनुसार स्वयं के अनुरुपवर्ण की भूमिसुखकारक समझनी चाहिए॥5॥ दिशा साधन समतल भूमि पर दो हाथ के विस्तार वाला एक गोल-वृत्त बनायें। उस वर्तुल के मध्य भाग में बारह अंगुल का शंकु स्थापित करके सूर्योदय के समय देखें। जहाँ शंकु की छाया का अंत्य भाग वर्तुल की परिघ में आये वहाँ एक चिह्न करें। इसे पश्चिम दिशा समझें। फिर सूर्यास्त के समय देखें। जहाँ शंकु की छाया का अंत्य भाग परिधि में आये वहाँ दूसरा चिह्न करें। इसे पूर्व दिशा समझें। अब पूर्व और पश्चिम चिह्नों के बीच एक सीधी रेखा खीचें। इस रेखा को व्यासार्ध मानकर एक पूर्व चिह्न से और दूसरा पश्चिम चिह्न से इस प्रकार दो गोल बनाने से पूर्व पश्चिम रेखा पर एक मछली के आकार का गोल बनेगा। इसके मध्यबिंदु से गोल के स्पर्शबिंदु तक एक सरल रेखा खींचें, जहाँ यह ऊपर के बिंदु को स्पर्श करे उसे उत्तर दिशा और जहाँ नीचे के बिंदु को स्पर्श करे उसे दक्षिण दिशा समझें। उदाहरण इ उ ए गोल का मध्य बिंदु "अ" है उसके ऊपर बारह अंगुल का शंकु स्थापित करके सूर्योदय के समय देखा तो शंकु की छाया गोल में "क" बिंदु के पास प्रवेश करती हुई दिखाई दी। अतः "क" बिंदु को पश्चिम दिशा समझना चाहिए। मध्याह्न के बाद सूर्यास्त के समय इस शंकु की छाया 'च' बिंदु के पास गोल के बाहर निकलती हुई दिखाई दी अतः “च" बिंदु को पूर्व दिशा समझना चाहिए। फिर "क" बिंदु से "च" बिंदु तक एक सीधी रेखा खींची जाय तो वह पूर्व-पश्चिम रेखा होगी। इस पूर्व-पश्चिम रेखा कोव्यासार्धमानकर "क" बिंदु से एक "च छ ज" और "च” बिंदु से दूसरा “क ख ग" गोल बनायें तो पूर्व पश्चिम रेखा के ऊपर मछली के आकार का एक गोल बनेगा। अब मध्य के "अ" बिंदु से एक लंबी सरल रेखा खींचें, जो मछली के आकारवाले गोल के मध्य में से निकलकर दोनों वर्तुलों के स्पर्श बिंदु को स्पर्श करती हुई बाहर निकले उसे उत्तर-दक्षिण रेखा समझना चाहिए। जन-जन का 5161वास जैन वास्तुसार
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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