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________________ Essence of Jain Vaastu जैन वास्तुसार श्री वीतरागाय नमः। परम जैन चन्द्राङगज - ठक्कुर फेरु विरचित सिरि - वत्थुसार - पयरणं। श्री वास्तुसार प्रकरण मंगलाचरण सयलसुरासुरविंदं दंसणवण्णाणुगं पणमिऊणं। गेहाइवत्थुसारं संखेवेणं भणिस्सामि॥ 1 ॥ सम्यक दर्शन और सम्यक ज्ञानवाले देव और दानव आदि के समूह को प्रणाम करके घर आदि बनाने की विधि को जानने के लिये संक्षेप में वास्तुसार नामक शिल्पग्रन्थ की मैं (ठक्कुर फेरु) रचना करता हूँ॥1॥ द्वारगाथा इस ग्रंथ में तीन प्रकरण हैं जिसमें गृहवास्तु नामक प्रथम प्रकरण में एक सौ इक्यावन, बिम्बपरीक्षा नामक दूसरे प्रकरण में तिरपन और तीसरे प्रासाद प्रकरण में सत्तर गाथाएँ हैं। तीनों प्रकरणों की कुल मिलाकर दो सौ चौहत्तर गाथाएँ हैं।। 2 ॥ भूमिपरीक्षा जिस भूमि में घर तथा मंदिर आदि बनाना हो उस भूमि में चौबीस अंगुल के नाप का गड्ढा खोदना चाहिए। उसमें से जो मिट्टी निकले उसी मिट्टी से वह गड्ढा भर देना चाहिए। अगर मिट्टी कम पड़े अर्थात् अगर गड्ढ़ा पूरा भर न जाये तो हीनफल, मिट्टी अधिक हो तो उत्तम फल और अगर गड्ढ़ा ठीक से भर जाये, मिट्टी बच न जाये तो समान फल समझना चाहिए॥3॥ अथवा उस चौबीस अंगुल के गड्ढे में पूरा पानी भरें। फिर एक सौ कदम दूर जा कर वापस आ कर उस पानी से भरे हुए गड्ढ़े को देखें। अगर गड्ढ़े का पानी तीन अंगुल सूख जाय तो अधम, दो अंगुल बराबर पानी सूख जाय तो उत्तम भूमि समझें ॥4॥ जन-जन का जैन वास्तुसार 12
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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