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________________ इन्हें अधिक स्पष्ट रूप से समझें तो - * नैऋत्य कोण (South West) में नीची भूमि - रोगकारक, क्लेशकारक। * पश्चिम दिशा (West) में नीची भूमि - धनधान्य विनाश कारक। * दक्षिण दिशा (South) में नीची भूमि - कानून-फिसाद दायक। * अग्नि कोण (South East) में नीची भूमि - मृत्युकारक। * वायव्य कोण (North West) में नीची भूमि - क्लेश, प्रवास रोग कारक। * मध्यभाग (Centre) में नीची भूमि - सर्वप्रकार से विनाशकारक। ये सारे निम्न स्तर और उनके आनेवाले परिणाम जानकर बड़ी सावधानी से भूमिपरीक्षा और भूमिखरीद करें। संक्षेप में दक्षिण एवं पश्चिम दिशाओं के स्तर ऊंचे हों ऊंचाई वाले हों। 9. प्रशस्त भूमि : जो उत्तम भूमि दर्शनमात्र से मन और नेत्र को प्रसन्नकर्ता, आह्लादपूर्ण, उत्साह-वर्धक दिखाई दे उस भूमि को भवन-निर्माण के योग्य समझें। ऐसी भूमि ही खरीदें। प्राथमिक स्वरुप, प्रकार और स्तर की ये सारी साररुप बातें महत्त्वपूर्ण होकर स्वीकार करें। अच्छा तो यह होगा कि सर्वोच्च प्राथमिक महत्त्वपूर्ण आवश्कयता ऐसी भूमिखरीद-भूमिचयन-भूमिपरीक्षा के पूर्व किसी तज्ञ, अनुभवी वास्तुशास्त्री को साथ ले जाकर उपर्युक्त सभी प्रतिमानों और पहलुओं से यह सारा कार्य करें। अप्रशस्त, अनुचित, अयोग्य भूमि-स्थल को पसंद करने से बचें - पैसों से सस्ती मिलती हो तो भी। फिर अपने थान से निकट ही कोई भूमि-स्थल मिल जाता हो तो अपने स्थान से दक्षिण या पश्चिम में पड़नेवाली भूमि कभी न खरीदें। अपने से उत्तर या पूर्व वाली भूमि खरीद सकते हैं। दूसरी बात - खरीदी जा रही भूमि (कि जहाँ अपना खास निवास या कार्यस्थान बनाना है) आजुबाजु के किस वातावरण, पड़ौस, अन्य भवनों या मंदिरों के निकट या बीच में पड़ती है यह खास विवेकपूर्वक सूक्ष्म दृष्टि से और सभी पहलुओं को सोच कर समग्रता में, (in totality) निर्णय करें। इस विषय पर अन्यत्र सूचित किया गया है। फिर इस नूतन खरीदीवाली भूमि अगर प्राकृतिक रुप से ही अपने से पूर्व तथा उत्तर दिशा में तालाब, झरना, सरोवर, नदी, गड्ढ़े आदि से युक्त हो और दक्षिण तथा पश्चिम दिशा में (अर्थात् अपने पीछे और दक्षिण बाजु पर) टीले, टेकड़े, पर्वत, पहाड़ियाँ आदि से भरी पड़ी हो तो सहज नैसर्गिक रुप से ही वह अत्यंत अनुकूल और वरदान समान सिद्ध होगी। जैन वास्तुसार 10
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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