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________________ सर्वांगीण, समग्रताभरी दृष्टि से लिखने को प्रवृत्त प्रयत्नशील ऐसे इसलेखक का आधार है- वर्षों का स्वयं का अध्ययन, अनुचिंतन, गुरुगम एवं विभिन्न ग्रंथ । इन आधारों पर सम्पन्न अपने स्वानुभव प्रयोगों के पश्चात् यह वास्तु-निष्कर्ष-विमर्श प्रस्तुत किया जा रहा हैं। । वास्तु अध्ययन संक्षेप (Studies in Vaastu) ऐशान्यां देवतागेह, पूर्वस्यां स्नानमंदिरम्, आग्नेयां पाकसाधनं, भंडागारमुत्तरे। आग्नेयपूर्वयोर्मध्ये आज्यगेहं प्रसास्तते, यम्यनैऋत्ययोर्मध्ये पुरीशत्यागमंदिरम् नैऋत्याम्बुपायोर्मध्ये विद्याभ्यासस्य मंदिरम्, पश्चिमनिलयोर्मध्ये, रोधनार्थं गृहं स्मृतम्॥ * अति संक्षेप सार* * घर की पूर्व दिशा में करें सिंहद्वार - प्रवेशमुख्य द्वार - स्नानालय भी। * दक्षिण (पश्चिम की ओर) में करें शयनस्थान। (B) * उत्तर में धन, कुबेर, संग्रह, आयुधादि स्थान (वायव्य की ओर) (w) * पश्चिम में भोजनार्थ बैठने का स्थान। (D) * अग्निकोण में पाकसाधन - रसोईघर, अग्निचूल्हा। (K) * नैऋत्य में शौचालय नीर के साथ। (L) * वायुकोण-वायव्य-में हो सर्वायुधस्थान। (W) * ईशान कोण में धर्मस्थान,जलस्थान भीधरती के नीचे।(G) * घर के मध्य में खाली स्थान हो। * दक्षिण-द्वार : यदि दक्षिण में द्वार करना ही पड़े निरुपाय से, तो वह द्वार के आठ भागों में से 5वें अथवा 3रे (तीसरे) भाग में ही रखा जाय। दक्षिण-अग्नि और दक्षिण-पश्चिम दिशा कोण की ओर (SE) कभी द्वार न रखें। वैसे दक्षिण द्वार (SW) यमद्वार है। सुखं धनानि बुद्धिश्च संतति सर्वदानृणाम्। . तस्य लोकस्य कृपाया सात्रमेत - धुरिर्यधी॥ (समरांगणसूत्रधार) "To attain health, wealth, children and many other advantages Vaastu Shastra helps to a great extent. Affliction of incorrect Vaastu creates sorrows and disappointments. So houses, villages, towns and cities shall be built according to Vaastu. Hence, Vaastu Shastra was brought into light by Sages for the betterment and overall welfare of Society." जैन वास्तुसार
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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