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________________ संपन्नों के प्रति विपन्नों का, अभाव ग्रस्तों का यह उद्बोधन क्या कहता है ? विशाल निरीक्षण और सर्वेक्षण यह स्पष्ट करता है कि वर्तमान के अधिकांश मध्यम-वर्गीय एवं निम्न- वर्गीय श्रावक स्वास्थ्य एवं साधन-आराधन दोनों दृष्टियों से निकृष्ट ऐसे आवासों में जी रहे हैं, जीवन को बोझवत् ढो रहे हैं - बिना किसी प्रसन्नता, उल्लास और सुख-शांति के। इन में कुछ अवश्य दरिद्र हैं, फिर भी अ-दीन मन के पुणिया श्रावकवत् अल्पसंतुष्ट एवं निज मस्ती में लीन ऐसे जन भी हैं, परन्तु लाखों में थोड़े से ही। भारत के अधिकतम नगरों, शहरों, गावों के अधिकतम श्रावकों का जन जीवन इस दृष्टि से बड़ा ही चिन्तनीय है, चिन्तास्पद है, उनके पुनरुत्थान की अपेक्षा रखता है। मनुष्य के "वास" का प्रथम आधार ही जहाँ निकृष्ट, संकीर्ण एवं कुंठित है, वहाँ आगे के अन्य आधारों की बात बाद की रह जाती है। यह कठोर वास्तविकता, यथार्थता हमारे स्वयं के एवं अन्य अनेक सहयोगियों के व्यापक निरीक्षण - सर्वेक्षण से प्रतिबिम्बित हुई है। जिस किसी सजग, सचिन्त व्यक्ति या संस्था को इस तथ्य में सन्देह होवें, वे अपना निज अनुभव पूर्ण अवलोकन सर्वेक्षण अवश्य करें और उससे समाज को अवगत करायें। इस ओर हम अधिक गहराई से यहाँ विश्लेषण करना नहीं चाहेंगे। आज के हमारे विभीषिकाओं एवं विषमताओं से भरे वर्तमान में, पंचम काल के वर्तमान में, नतो हम आदियुगीन ऋषभ युगीन अथवा नेम युगीन अथवा पार्श्व - युगीन व्यवस्थाओं की कल्पना कर सकते हैं, न गायों - गोकुलों से भरे आनन्दादि संपन्न श्रावकों के महावीर - युगीन श्रावकों के, विभिन्न आवासों की तुलना कर सकते हैं। परन्तु हम कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य एवं स्वनामधन्य महाराजा कुमारपाल के समय की श्रावक-जन की 'सम' एवं 'संपन्न' स्थिति को तो अपना आदर्श बना सकते हैं। ऐसी साम्यभरी समाज व्यवस्था में न तो कोई श्रावक 'दीन' रह सकता है, न सुयोग्य समुचित 'आवास-विहीन'। पर क्या आज हमारे समक्ष एक 'स्व-केन्द्रित' एवं 'स्व-पुण्य के ही कामी' श्रावक-समूह के सिवा कोई सुव्यवस्थित समाज है भी? आज वास्तविक अर्थ में न तो कोई 'समाज' है, न कोई व्यवस्था'-'समाज-व्यवस्था। एक हेमाचार्य अपने श्रावकों की दीनता से द्रवित होकर आदेश दे सकते हैं उन्हें ऊंचा उठाने का एवं एक कुमारपाल ही उसे शिरोधार्य कर बीड़ा ग्रहण कर लेते हैं उनके उद्धार का, उत्थान काजब कि आज...? महाप्रश्न है यह प्राण प्रश्न है यह। आज है कोई दानवीर ? है कोई युगाचार्य? आज भारत के अत्यन्त ही अनुमोदनीय ऐसे पंजाब, लुधियाणा और महाराष्ट्र - बम्बई इत्यादि के अपवाद रुप उदाहरणों को छोड़कर, व्यापक स्तर पर भारत के जन-जन का उठायास्तस 90
SR No.032324
Book TitleJan Jan Ka Jain Vastusara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2009
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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