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________________ GOOKGASO90900 श्री केशरवाड़ी तीर्थ पर आप भूमितल के कमरे (गुफा) में जप व ध्यान साधना करते थे। पंन्यास प्रवर श्री भद्रकंर विजयजी से आपने दीक्षा देने के लिए निवेदन किया था। गुरुदेव ने उनकी उम्र, स्वास्थ्य आदि कई बातों का विचार कर दीक्षा नहीं दी। उनको श्रावक धर्म का पालन करते हुए आत्मकल्याण और शासन सेवा करते रहने का परामर्श दिया था। उनमें आत्मज्ञान प्राप्त करने की विशेष रूचि थी। भविष्य मेंघटने वालीघटनाओं के संकेत: जैन एकता के सूत्रधार प्रसिद्ध आचार्य श्री वल्लभसूरिजी के प्रति उनका भक्तिभाव ज्यादा था। एक बार उनकी देह के अग्नि संस्कार का आभास हुआ। आचार्य श्री का अंतिम समय निकट जानकर वे उनकी सेवा में मुंबई पधारे। एक महिने से भी ज्यादा समय तक वहाँ ठहरकर उनके काल धर्म के बाद ही मद्रास पधारे। साधारण भवन में आयोजित गुणानुवाद सभा में स्वामीजी ने खुद इस घटना का उल्लेख किया था। उनको कुछ अनुभूतियाँ हुई थी। उनकी अनुभूतियाँ प्राय: गुप्त रही। जिनशासन सेवा: आपने आबूजी में जैन मिशन सोसायटी नामक संस्था की स्थापना की थी। बाद में इस संस्था को मद्रास ले आए। हिन्दी, अंग्रजी व तमिल भाषा में कई पुस्तकों का प्रकाशन किया और उनका वितरण जैन व अजैन लोगों के बीच किया। जैन धर्म, अहिन्सा, शाकाहार आदि के प्रचार व प्रसार का कार्य लंबे समय तक चला। सोसायटी के अंतर्गत निम्नलिखित संस्थायें चलती थी। १. जैन मिशन एलिमेन्ट्री स्कूल २.जैन मिशन लायब्रेरी ३. कला निकेतन ४. धार्मिक अध्ययन के लिए कक्षाएँ सर्वधर्म सम्मेलनों में उन्होंने कई बार जैन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। श्वेताम्बर ओर दिगम्बर समाज में आपस में सौहार्द का वातावरण बनाने के लिए वे हमेशा प्रयत्नशील रहे। साधर्मिकों की आर्थिक उन्नति के लिए भी वे प्रयत्नशील रहे। साउथ इंडियन ह्युमेनिटेरियन लीग के कार्यो में उनकी सक्रिय भागीदारी रही। जिन शासन की विविध सेवाओं POSEROSSRO W SOSDOOTCOM
SR No.032318
Book TitleNavkar Mahamantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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