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________________ RRORSCOR SO90909090 साधर्मिक उत्कर्ष, शिक्षा प्रसार, समाज में एकता स्थापित कराना, समाज सुधार आदि विचारों का उनपर विशेष प्रभाव पड़ा। बड़ी उम्र में उनका नवकार साधक पंन्यास प्रवर श्री भद्रंकर विजयजी के साथ समागम हुआ। उनकी सरलता, निष्पहता, मैत्री भावना, अनेकांत दृष्टि और साधना से वे विशेष प्रभावित हुए। योगीराज श्री सहजानंदघनजी के साथ राजगृही, हंपी व चेन्नई में उनका समागम हुआ। उनकी योग साधना, अद्भुत जीवन चर्या व अनुभव वाणी से विशेष प्रभावित हुए। श्री लक्ष्मण सूरिजी, लावण्यसूरिजी, पूर्णानंद सूरिजी, भुवनभानुसूरिजी, विक्रम सूरिजी आदि अनेक गुरू भगवंत के साथ उनका समागम रहा। ज्ञान दान: आप धार्मिक शिक्षा को बढावा देने के लिए पंडित श्री कुंवरजी भाई व पंडित हीरालालजी को मद्रास लाये थे। श्री केशरवाडी तीर्थ पर शासन सेवा छात्रावास (गुरुकुल) की स्थापना की थी। श्री जिनदत्तसूरि जैन मंडल के सदस्यों को 'जीव विचार' पढाने के लिए वे केशरवाडी से साहुकारपेट तक बस से आते-जाते थे। अट्ठम का तप होने पर भी पढाने के लिए आना जाना बंद नहीं करते थे। वे धार्मिक अध्ययन कराने के बाद ही अट्ठम का पारणा करते थे। उन्होंने अनेक धार्मिक 'शिविरों में युवा वर्ग को प्रेरित किया था। वे संपर्क में आने वालों की जिज्ञासा व तत्व रूचि संतुष्ट करने हेतु धर्मवार्ता के लिए सदैव तत्पर रहते थे। साधकीय जीवन: स्वामीजी की साधना के निम्नलिखित तीन सूत्र मुख्य थे। १. नवकार मंत्र का जप २. आयंबिल का तप ३. ब्रह्मचर्य का खप वे नवकार मंत्र का जाप खूब करते और करवाते थे। वे आयंबिल का तप बहुत करते थे। उनका आयंबिल अलूणा (बिना नमक का) होता था। आहार में चार-पांच द्रव्य ही उपयोग में लेते थे। कभी-कभी रोटी पानी के साथ खा कर आयंबिल पूरा करते थे। अमुक समय बाद उन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार कर लिया था। स्त्री परिचय बहुत ही कम था। उनके जीवन में जयणा का महत्वपूर्ण स्थान था। 'नमामि सव्व जिणाणं' खमामि सव्व जीवाणं' की धुन कभीकभी करवाते थे। यात्रा के समय रेलवे स्टेशन पर भी सामायिक, प्रतिक्रमण आदि नियमों का पालन करने से नहीं चूकते थे। KOREGSe v HOSO909090
SR No.032318
Book TitleNavkar Mahamantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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