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________________ CCCCCCCCe 1925050009 SOSOSOSO तो इस हेतु भी महान साधु जन, संत एवं योगी केवल नवकार मंत्र जपते हैं। (16) महान ध्यानियों ने निर्देशित पद्धतियों के अनुसार केवल इस नवकार मंत्र पर सततरूप से एकाग्र होकर ध्यान सिद्ध कर सर्वज्ञता प्राप्त की है और वे तीनों ही लोक (नारक, स्वर्ग, पृथ्वी) में वंदित होते हैं, पूजे जाते हैं, भजे जाते हैं। (17) घातकी पशु और भयानक प्राणी कि जिन्होंने हज़ारों पाप किये है और सैंकड़ों जीवों की हत्या कर डाली है, वे भी साधुजनों एवं संतों के मुख से नवकार मंत्र की आवाज सुनकर स्वर्गलोक पहुँचे हैं। (18) जय हो नवकार मंत्र का ! केवल आठ संपदा उसमें निहित होते हुए भी, उसमें ( नवकार मंत्र में) महान साधुओं और संतों को अनंत संपदा प्रदान करने का सामर्थ्य है । (19) नवकार मंत्र मेरे सच्चे माता-पिता, नेता, देव, धर्म, गुरू, प्राण, स्वर्ग, मोक्ष, सत्त्व, तत्त्व, मति और गति हैं। (20) नवकार मंत्र तीनों जगत में कहीं भी प्राप्त न हो सके ऐसा सारे ही मंत्रों के अर्क रूप रसायण है। सर्व पापों का नाश करने हेतु महाभयंकर ऐसा मोह रूपी विष को उतारने हेतु और सर्व कर्मों का क्षय करने हेतु वह समर्थ है। सर्वज्ञता और मोक्ष प्राप्त करने का वह एक मात्र साधन है। पार्थिव जीवन के असीम सागर को पार करने का वह एक मात्र सेतु है और वह मोक्ष के, मुक्ति के और संप्राप्ति के शाश्वत निवासस्थान (सिद्धालय) पर पहुँचने हेतु वह सारी सिद्धियाँ, विभूतियाँ, आध्यात्मिक संप्राप्तियाँ अपने में संजोये हुए हैं। इसलिये प्रत्येक आत्मा को चाहिये कि वह इस अद्भुत असाधारण परमेष्ठि मंत्र का सतत अधिक से अधिक सम्भव हो उतनी बार जाप करे। कुछ उपयोगी सूचनाएँ इस महामंत्र का जाप करने एवं ध्यान धरने हेतु निम्न दर्शित कुछ प्राथमिक योग्यतायें उसके साधकों के लिये आवश्यक हैं : (1) उसे स्वयं को प्रात: काल में जल्दी, सूर्योदय के एक घंटा पूर्व उठ जागने की और इस पवित्र मंत्र को धीरे धीरे सुमधुर स्वर में, विश्व कल्याणार्थ मानसिक भावांदोलनों के साथ उच्चारित करने की आदत डालनी चाहिये। (2) उसमें सर्व मनुष्यों एवं मनुष्येतर जीवंत जीवों के प्रति दयामय और करूणापूर्ण ष्टबिंदु होना चाहिये और उसे वैश्विक भ्रातृत्व भाव अधिकाधिक रूप से विकसित करना चाहिये। GECE 17 595: xox
SR No.032318
Book TitleNavkar Mahamantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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