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________________ (6) नवकार मंत्र के केवल एक अक्षर का उच्चारण भी सात सागरोपम के पाप नाश करता है, उसका एक पद पचास सागरोपम के पापों का नाश करता है और संपूर्ण नवकार मंत्र पांच सौ सागरोपम के पापोंको दूर करता है, धो डालता है। (नोट : एक सागरोपम को नरक के जीवों द्वारा अनुभव किये गये पापों से नापा जाता है।) (7) धर्मशास्त्रों में निर्देशित विधि के अनुसार जो एक लाख बार नवकार मंत्र का जाप करते हैं, वे निश्चित रूप से तीर्थंकर नामकर्म उपार्जित करेंगे और अपने आप को आहेत्, जिनेन्द्र अथवा विजेता की सर्वोच्च अवस्था पर ऊर्वीकृत करेंगे, ऊर्ध्वगमन करायेंगे। (8) जैसे हवा जल को सोख लेती है, वैसे ही पंच परमेष्ठि के प्रति श्रद्धापूर्वक किया गया एक नमस्कार भी सारे रोगों और आपदाओं को हर लेता है, दूर कर देता है। (9) जो दस प्राणों से युक्त इस शरीर को पांच नमस्कार को रटते हुए छोड़ते हैं (देह त्याग करते हैं) वे निश्चित रूप से मुक्ति पाते हैं। यदि किसी अपरिहार्य-अनिवार्य कारण से वह मुक्ति नहीं पाता है तो वह निश्चित रूप से स्वर्ग में वैमानिक देव बनता है। (10) यह समझ लेना है कि जिन्होंने निर्वाण प्राप्त किया है और जो निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त कर रहे हैं, वे केवल नवकार मंत्र के प्रभाव से ही वह प्राप्त करते हैं। (11) ॐकार, ही कार एवं अर्हम् आदि प्रभावपूर्ण बीज मंत्र केवल नवकार मंत्र के ही प्रतिफलन हैं, अर्थात् ॐ, ह्रीं, अर्हम् आदि बीज मंत्रों का मूल स्रोत नवकार मंत्र में है। इसलिये, नवकार मंत्र सभी मंत्रों का उद्गम स्थान है। (12) यह नवकार मंत्र उन सारी सुविधा सामग्रियों और परिस्थितियों का प्रदान करनेवाला निधि भंडार है कि जिस के द्वारा हम जन्म मरण के अशाश्वत जगत को-भवसंसार को पार कर सकते हैं। (13) यदि मन से चिंतित और वचन से प्रार्थित ऐसा शरीर से प्रारम्भ किया हुआ कोई कार्य संपन्न नहीं हो पाया है (परिणाम नहीं ला पाया है) तो वह यह दर्शाता है कि नवकार मंत्र का प्रणाम और वंदनाओं पूर्वक उच्चारण स्मरण नहीं किया गया है। (14) सर्व भयों से मुक्त होने हेतु साधक को भोजन करते समय, सोते समय, जागते समय, किसी भी कार्य का आरम्भ करते समय, दु:खों के एवं कष्टों के समय, हर समय बार बार पंच नमस्कार का स्मरण उच्चारण करना चाहिये। (15) यदि परम तत्त्व अथवा परम पद प्राप्ति की सच्ची खोज की भावना, अभीप्सा हो RECOGOSS 16 GOSDICI090
SR No.032318
Book TitleNavkar Mahamantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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