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________________ केवलज्ञान प्राप्त होने के अनेक प्रमाणित-दृष्टांत श्वेताम्बर साहित्य में देखे जाते हैं। जहाँ केवलज्ञान प्राप्त हुआ वहाँ साध्य की सिद्धि हुई, फिर साधक दशा कहाँ रही ? कि जिससे साधन बसाने पड़े। __ वंदनीय कौन ? केवलज्ञान या ओघा मुहपत्ति आदि साधुस्वांग ? यदि ओघा मुहपत्ति आदि वंदनीय होते तो उनके मेरू समान ढेर व्यर्थ क्यों बतलाए जाते हैं ? ओघे तो गोरजीओं (यतियों) के पास भी होते हैं। उन्हें क्यों अवंदनीय ठहराते हो ? जैसे उनके पास मुनिदशा नहीं है, वैसे ओघा मुहपत्ति होते हुए भी जिन्हें आत्मज्ञान, कि जिसके द्वारा आत्मा को देह से भिन्न प्रत्यक्ष देखा जाना जा सकता है, वह नहीं हो तो उसे भी मुनिदशा नहीं है; क्योंकि मुनिदशा तो आत्मज्ञान के द्वारा ही हो सकती है। ‘अप्प नाणेण मुणी होई' ऐसा आचारांग सूत्र कहता है, इसलिए वे वंदनीय पूजनीय नहीं हो सकते। वंदनीय-पूजनीय तो ज्ञानादि आत्मगुण हैं, अज्ञानादि नहीं ! शास्त्रज्ञान तो ज्ञानियों के ज्ञान की स्थापना है, उस उधार ली हुई रकम का दूसरा कोई मालिक नहीं बन सकता। - स्वयं को आत्मज्ञान नहीं होते हुए भी जो अपने को सुगुरु मानकरमनवाकर भक्तों के द्वारा अपनी सविधि वंदना और सोने के फूलों से नवांग पूजा करवाने की रसवृत्ति रखते हैं, तथा आत्मज्ञानियों की आशातना करने-करवाने में अपना महारथ प्रशंसित करते हैं उनकी क्या गति होगी ? यह देखते हुए सखेद आश्चर्य होता है, क्योंकि 41
SR No.032315
Book TitleUpasya Pade Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2013
Total Pages64
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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