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________________ मोक्खपहे॥' __ अर्थ : नाना प्रकार के साधु-पाखंडी वेश और गृहस्थ वेश धारण करके मूढ़ अज्ञानीजन ऐसी एकांतिक प्ररूपणा करते हैं कि यह वेश ही मोक्षमार्ग है।' उन्हें अप्रमत्त योगी आचार्य कुंदकुंद इस प्रकार समझाते हैं कि- 'वेश कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है, क्योंकि अहँतदेव भी देह से निर्मल होने से उल्टे देहाश्रित वेशभूषा को तजकर दर्शनज्ञान चारित्र को भजते हैं। इसलिए निश्चय से साधु स्वांग या गृहस्थस्वांग मोक्षमार्ग नहीं है क्योंकि वह शरीराश्रित होने से पर द्रव्य है, परन्तु दर्शन-ज्ञान-चारित्र ही मोक्षमार्ग है। क्योंकि वह आत्माश्रित होने से स्वद्रव्य है। इस कारण से हे आत्मार्थीजनों ! आगार अथवा अणगार की वेशभूषा के आग्रह तजकर अपनी आत्मा को दर्शनज्ञान-चारित्र रूपी मोक्षमार्ग में जोड़ों। फिर 'सिद्धा पनरस भेया' अर्थात् पन्द्रह भेद से सिद्ध। यह श्वेताम्बर आगम कथन जग प्रसिद्ध है। उनमें से एक भी भेद की उत्थापना करने वाले उत्सूत्रभाषी को अनंत संसारी बनना पड़ता है- ऐसी दिव्यध्वनि सुनाने वाले भवभीरु से केवल मनकल्पित स्वलिंग मात्र का ही एकांतिक आग्रह कैसे हो सकता है ? नाटक करते-करते या नाटक देखते-देखते, श्रृंगार सजते-सजते या विवाह के फेरे लेते-लेते, खाते-खाते या सफर करते-करते, जीवदया का चिंतन करते-करते या गर्दन पर छुरी चलाते-चलाते इस तरह नाना प्रकार की बाह्य चेष्टाएँ होते हुए भी अंतर्मुहूर्त में 40.
SR No.032315
Book TitleUpasya Pade Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2013
Total Pages64
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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