SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर पहुंचे हुए सद्गुरुदेव यो.यु.श्री सहजानन्दघनजी। अपनी युगप्रधानपद प्राप्ति तक की महामहिमा को भी गोपित कर, परम योगीन्द्र की सर्वोच्च योगदशा को विस्मृत कर, एक सरल बालवत् विनम्रता धारण कर, अनन्य आत्मशरणप्रदा सद्गुरु राजविदेह' का पराभक्तिवश शरण ग्रहण कर अपनी आत्मबलि उनके श्रीचरणों में धर दी, समर्पित कर दी, लघुता धारण कर ली यह सारी उनकी 'अकथ-कहानी' है। ___ श्रीमद्जीवत् परिशुद्ध-परिपूर्ण आत्मध्यानावस्था की देहातीत दशा के शिखर पर पहुँचकर उन्होंने श्रीमद्जी की वर्तमान-प्रवर्तमान उच्च पदासीन महाविदेही-महाविदेहस्थ दशा का जो दर्शन किया, वह अद्भुत है, अन्यों से अगम्य भिन्न और मौलिक रहा है। उस अपूर्व दर्शन का ही प्रतिदर्शन है इस लघुकृति में। जौहरी की गति और परख जौहरी ही जानता है। उन्हें कविमनीषी क्रान्तदृष्टा ही पहचान पाता है। वैसे अद्भुत क्रान्तदृष्टा श्रीमद्जी को सहजानंदघनजी जैसे स्वानुभूत क्रांतदृष्टा ही गहराई में और सही दृष्टि-परिप्रेक्ष्य में नितांत अनूठे रूप में पहचान पाए हैं। बड़ी दुर्लभ होती है विरल सत्पुरुषों की सही पहचान। अंग्रेज कवि-मनीषी बॅन जॉन्सन ने इस संदर्भ में बिलकुल ठीक कहा है- "To judge of poets is only the faculty of poets, and not of all, but the best !" (कवियों का मूल्यांकन करना यह कवियों के, केवल उच्च कोटि
SR No.032315
Book TitleUpasya Pade Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2013
Total Pages64
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy