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________________ पंचभाषी पुष्पमाला कृत्य की वृद्धि की हो तो- (लघुता धारण करना और उसे गुरुकृपा मानना)। १०१. आज अपनी किसी शक्ति का अयोग्य रूप से उपयोग मत करना, मर्यादालोपन से कुछ करना पड़े तो पापभीरु रहना। १०२. सरलता धर्म का बीजस्वरूप है। प्रज्ञा के द्वारा सरलता का सेवन किया गया हो तो आजका दिवस सर्वोत्तम है। १०३. हे स्त्री! (तुम) राजपत्नी हो या दीनजनपत्नी हो, मुझे उसकी कोई परवाह नहीं है। मर्यादापूर्वक व्यवहार करनेवाली नारियों की मैंने तो क्या, पवित्र ज्ञानियों ने भी प्रशंसा की है। १०४. सदगुणों के कारण यदि आप पर जगत का प्रशस्त मोह होगा तो हे नारी ! मैं आप को वंदन करता हूँ। १०५. बहुमान, नम्रभाव, विशुद्ध अंतःकरण से परमात्मा का गुणचिंतन, श्रवण, मनन, कीर्तन, पूजा-अर्चना इन सब की ज्ञानीपुरुषों ने प्रशंसा की है, अतः इन के द्वारा आज के दिवस को शोभायमान बनाएँ। कि जिनभारती
SR No.032308
Book TitlePanchbhashi Pushpmala Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherVardhaman Bharati International Foundation
Publication Year2007
Total Pages46
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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