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________________ अनुकरणीय गुरुर्पण राष्ट्रभाषा है और भारत के सभी नागरिकों के लिए सुगम भी है अतः उन लेखों का हिन्दी अनुवाद अत्यावश्यक था । यह कार्य दीर्घकाल से अपेक्षित था । किन्तु भाषान्तर करना इतना सरल नहीं है। उसके लिए दो भाषाओं का ज्ञान, विषय का ज्ञान एवं लेखक के भावों को समझना आवश्यक है । इस अपेक्षा से भाषान्तर एक अत्यंत कठिन कार्य है । श्री प्रतापभाई टोलियाने अपनी विदुषी धर्मपत्नी के सहयोग से इस दुरूह कार्य को संपन्न किया है यह एक आनन्द की घटना है । प्रतापभाई साहित्य, संगीत एवं ध्यान मार्ग के साधक हैं। शास्त्राध्ययन तो किया ही है साथ ही अनेक गुरुजनों के आशीर्वाद भी पाए हैं। पंडित सुखलालजी के कृपापात्र विद्यार्थी रहे हैं। पंडितजी के स्वप्नों को साकार करने के लिए आजीवन साधना की है। अब यहाँ उन्होंने पंडितजी के चिन्तनपूर्ण लेखों को हिन्दीभाषी जिज्ञासुओं के लिए सुलभ किया है। पंडितजी का लेखन स्पष्ट और सुबोध होते हुए भी सूत्रात्मक एवं गहन है । इन बातों का संपूर्ण ध्यान रखते हुए प्रतापभाई ने विनम्र एवं भक्तिपूर्ण हृदय से अनुवादन का कार्य किया है। इसके लिए मैं धन्यवाद देता हूँ । श्रीमद् राजचंद्र गाँधीजी के आध्यात्मिक गुरू थे । श्रीमद्जी स्वयं अध्यात्म के उच्च शिखर पर विराजमान थे । उन्होंने बाल्यावस्था में ही अपनी स्मृति के आधार पर शतावधान करके देश एवं विदेश के लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया था । किन्तु उन्होंने सोचा कि शतावधान से मेरी प्रतिष्ठा तो बढ़ सकती है किन्तु मेरा आत्मकल्याण नहीं हो सकता । अतः उन्होंने शतावधान के प्रयोग करना बंद कर दिया था। इस बीच गाँधीजी को पत्र द्वारा मार्गदर्शन दिया और गाँधीजी ने श्रीमद्जी को अपना आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में माना। । श्रीमद्जी और पंडितजी दोनों भी गुजरात के, फिर भी कभी मिले नहीं थे । श्रीमद्जी की आध्यात्मिकता से सुखलालजी प्रभावित हुए थे । उन्होंने श्रीमद्जी के विषय में जो लिखा है वह श्रीमद्जी को समझने के लिए अति उपयोगी है। उनकी अमरकृति ‘आत्मसिद्धि' तो जैन गीता के समान है । श्रीमद्जी एवं उनकी कृतियों की पंडित श्री सुखलालजी ने सम्यक् समालोचना की है जो अत्यंत महत्वपूर्ण है, उनकी गरिमा को उजागर करनेवाली है । पंडित सुखलाल ने सन्मतितर्क ग्रंथ का संपादन गाँधीजी द्वारा स्थापित गुजरात पुरातत्त्व मंदिर में रह कर किया। इस दौरान वे गाँधीजी के साक्षात् परिचय में
SR No.032298
Book TitlePragna Sanchayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2011
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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