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________________ प्रज्ञा संचयन ग्रंथ की अनुवादित हस्तप्रति उनको संशोधनार्थ सौंपते समय उसे उन्होंने अपने सिरहाने पर यह कहकर रख दिया कि - "प्रतापभाई ! अभी नहीं ..." जिसे सुनकर आघात अनुभव कर स्तब्ध रह गया। बाद में तो उन दिनों सारे हंपी आश्रम पर उनके गंभीर स्वास्थ्य को लेकर एक सदमा-सा छाया रहा... उस पर भी अपने व्यवसाय में अप्रत्याशित अंतरायों एवं कसौटियों के बीच से गुज़र रहे अग्रज चंदुभाई गुरुदेव की स्वास्थ्य-चिंता करते हुए अपने ऊटी एवं बेंगलोर के कार्यों को छोड़कर शीघ्र हंपी पधारे . . . देर रात कुछ देर गुफा में गुरुदेव से मिले . . . शेष चिंतनार्थ पुनः प्रातः मिलने जाने पर - आश्रमाध्यक्ष के नाते महत्वपूर्ण कार्यों और उनके गंभीर स्वास्थ्य-संबंधित उपचारों विषयक विमर्श करने बैठते ही एक विवेक-विहीन व्यक्ति ने सोए हुए स्वयं गुरुदेव की जानकारी के बिना आश्रमाध्यक्ष को भी वहाँ से उठा देकर गुफा से बाहर भेज दिया - अधिकारी एवं आश्रम, गुरुदेव के सर्व हितचिंतक होते हुए भी। घटना का ज्ञान होने पर करुणाशील गुरुदेव ने तो अपने सुनिष्ठ सेवक को उन्हें लिवा लाने भेजा। परन्तु तब विलम्ब हो चुका था। - मोरार emenA अग्रज ने आहत फिर भी मौन रहकर, बाहर आकर मुझे यह व्यथा-वृत्तांत थोड़ासा सुनाकर, गुरुदेव की अनिच्छा (वेलोर अस्पताल नहीं लिये जाने की) का, पालन करवाने का जिम्मा मुझे सौंपकर, तुरन्त बम्बई की ओर जाने हेतु वहाँ से २ अक्तूबर, १९७० को प्रस्थान कर दिया। और उसी संध्या को बेलगाम निकट अपनी कार-दुर्घटना में ज़ख्मी होते हुए भी दूरस्थ हंपी गुफास्थित गुरुदेव के अनुग्रह आशीर्वाद से शांति-समाधिपूर्वक बेलगाम अस्पताल में देहत्याग कर दिया। उसी रात के समय हंपी आश्रम पर सांकेतिक सतत धुन-गान में रत मुझ पर यह असह्य अप्रत्याशित वज्राघात था, जो दूसरे दिन बेंगलोर पहुँचने पर ज्ञातरूप से आ पड़ा। उस समय की यह सारी अंतर्वेदना अन्यत्र अनेक लेखनों में प्रतिध्वनित और शब्दस्थ हुई है। परंतु नियति का अप्रत्याशित प्रहार यहाँ रुकनेवाला नहीं था। अभी तो दूसरे महा-वज्राघात का प्रहार शेष था। . . . और ठीक एक महीने के पश्चात् २ नवम्बर, १९७० को ही गुरुदेव ने भी हंपी आश्रम की गुफा में, अभूतपूर्व सजग समाधिदशा में, देह से विदेह का महाप्रयाण कर दिया . . . ।
SR No.032298
Book TitlePragna Sanchayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherJina Bharati
Publication Year2011
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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