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________________ छे, चूप थइ जाय छे. चाह मिट जाय – इच्छाओ ज लय पामी जाय कंइ ज न खपे ! ! पछी प्रारब्ध अनुसार भाग्यानुसार शरीरनुं रहेवू के शरीरन दूर थर्बु, रहे त्यां सुधी जे कंइ मळवानुं छे ते मळ्या ज करवानुं छे. एना प्रत्ये साक्षी रहीने जे फरजो छे स्वीकारेली पहेले भी तेने अदा करता रहेवू. आ रीतिए रहेतां घरमां पण केवळज्ञान थाय, राजगादी संभाळतां पण केवळज्ञान थाय, खाते खाते केवळज्ञान थाय, नाचतेकूदते केवळज्ञान थाय ! केवळज्ञान थया पछी बीजं शुं जोइए ? कशु नहीं. पुरुषार्थ कयो ? आ पुरुषार्थ करवानो छे. धर्मना नामे बाह्य क्रियाकांडो अने केवळ शरीरनां तप ! ! खावु के न खावु ए बधा शरीरनां काम छे. ड्राइवर तो सदा उपवासी ज छे. माही जे आत्मा छे तेणे अत्यार लगी कंइ खाधुं पीधुं खरं ? एक दाणो पण ए ग्रहण करी शके नहीं, एक जलबुंद पण ए ग्रहण करी शके नहीं. ए तो स्वयंमां परिपूर्ण छे, एने आवश्यक्ता ज नथी ! जे कंइ भूख अने प्यास लागे छे ते — मोटर 'मां लागे छे. मोटरने लागे छे. एमां 'करंट' छे एटले एने पोतानुं रुप मानी बेठो छे. एटले माने छे के मने भूख लागी ने तरस लांगी छे. पण आ खातोपीतों नथी. तो शरीरंनी टांकीमा पेट्रोल आंजे बंध राख्यु, आप्यु नहीं अने मनावे छे डाइवर साहेब के मारे आजे उपवास छे. ए भान राखीने बोले तो तो ठीक के हुँ तो उपवासी ज छु. पण आजे शरीरने पेट्रोल नाख
SR No.032295
Book TitleParam Guru Pravachan 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1998
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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