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________________ १२ नामे सांभळ्युं छे ते आत्म प्रदेशमा छे. चैतन्य प्रदेशमा छे ए वैभव : अनंत ज्ञानादि वैभव, अनंत सुखादि वैभव. पण आ काचली जेवा शरीरमां नथी ज. ए आत्मा पोताना प्रदेशमा ज छे. ए पोतानो जे प्रदेश छे ते स्वक्षेत्रे. अने ए स्वक्षेत्रमा पोताना भावनुं अनुकूळ बनी रहेQ ते “ स्वभाव", अने जे काळे ए भावने अनुकूळ रहे स्वभावने अनुकूळ ते “ स्वकाळ ". जैन तत्त्वदर्शनमां बहु सूक्ष्मताथी वातो करी छे. आ “ परहद "मां प्रवेशीने अत्यारे बिराजमान छे. करंट शरीराकार फेलायेलो छे अने इन्द्रियोना माध्यमथी बहारना पदार्थोंने जोवा-जाणवामां वपराय छे. ते परक्षेत्रमा स्थिति छे. अने पोते परक्षेत्रमा रहीने पोताने पण परद्रव्यरुपे माने छे के हुं पुरुष ने हुं स्त्रा, हुं मनुष्य. परद्रव्यरुपे - स्वथी भिन्न ए, जे पर – आ देह – ए रुपे पोते पोताने माने छे. पर – द्रव्यरुपे, परक्षेत्रमा रहीने अने परभावे - आ जे कामक्रोधादि भावो छे ते परभावो छे, परवस्तुने निमित्त करीने ऊठता भावो, ते परभावो : ओ परभावो क्रोध, मान, माया, हास्य, रति, अरति, भय, शोक, घृणा, कामवासना आ बधा परभावो छे. परभावे रहीने जे काळ ए वीतावे छे ते बधु दुःखमय : परकाळ ! तो एने स्वद्रव्यने–'पर'थी छूटुं पाडी समजण वडे अने स्वरुपमर्यादामां – अधिष्ठानमा एने अनुकूळ एवा भावो सेवीने रहेवानुं छे. ते रहेवानो जे समय ते "स्वकाळ". -ए काळ, स्वभाव अने नियतिपूर्वक पुरुषार्थ थाय तो भाग्य प्रमाणे बहारनो जे उदय हशे तेनो कोइ प्रभाव आत्मामां नहीं पडे !
SR No.032295
Book TitleParam Guru Pravachan 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1998
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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