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________________ ११ अने पछी अत्यारे ? तो आ जेम विस्तार पामतो जाय छे तेम अंदर प्रकाशपिंड आत्मा अने एने माहेंना जे पडदा छे एने-दूर करी नांखीए अने विस्तारीए तो आखा विश्वमा फेलाइ शके छे माटे आत्माने कथंचित सर्वव्यापक पण कयु ( कह्यो) छे अने कथंचित देहव्यापक पण कडं (कह्यो) छे. तो जेटलामां ए वस्तु रहे तेटलो विस्तार ते स्वक्षेत्र. आ जैन परिभाषा. वस्तुने समजाववानी कळा छे एक. स्व-काळ : हवे एक लक्षपात तेलतुं उदाहरण लइए. लाख औषधी तेलमां नाखी उकाळीने तैयार करेलु तेल -- लक्षपात तेल – एक बाटलामां भरी दीg. लाख वनस्पतिओना जे गुणधर्मो ते आ तेलमां छे. पण जे बोटल ते बोटलना कोइ कणमां नथी. तेलना बुंदमां छे पण बोटलना भागमां नथी ज. बोटलनी अंदर भले रहे छे पण लाख गुणो तेलना भागमां छे, कांचना भागमां नथी. तो आ शरीर केतुं छे ? बोटल ! एनी अंदर आत्मा रहे छे खरो, पण आत्माना ज्ञानादि गुणो बधा आ देहा नथी, के छ ? तो आत्माना गुणो ए ज आत्मा. ए कयां रहे छे ? पोताना चैतन्य प्रदेशमा. समजायु ? आनी अंदर रहेतां छतां य ते पोतामां रहे छे. श्रीफळनो गोळो - ज्यारे पाणी सूकाइ जाय त्यारे काचलीनी अंदर रहे छे खरं, पण काचलीथी ? गोळो गौळामां छे. निमित्त – नैमित्तिक संबंधे काचली अने गोळानों संबंध छे. तादात्म्य संबंध नथी. एज न्याये आत्माना अनंत वैभव रुपे जे आपणे भगवानना
SR No.032295
Book TitleParam Guru Pravachan 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1998
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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