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________________ विभावभाव एटले पर काळ, पर द्रव्य, पर क्षेत्र, पर भाव-वास्तविकपणे पर पदार्थना जे विशेषो ते रुप परभाव ते नडता नथी. नडे छे पोताना विभावभावो परने निमित्त करीने थता होवाथी ते विभाव भावो – ते नडे छे. ते विभावने स्वभावरुपे बदलावी नांखीए तो बहारनी परिस्थिति नडती नथी. महा--साधको, महाभुनिओ, ऋषि मुनिओ केटलाक महामुनिओने घाणीमां पीलवामां आव्या ! घाणीमां शरीर पीलायुं, साथे आत्मा केवळज्ञान ने मोक्ष ! ! जीवता बाळवामां आव्या महापुरुषोने. पण ए परिस्थितिनो प्रभाव एमना आत्मा पर पडयो नहीं. एटले आत्मा, आत्मभावे जाग्रत रह्यो ! स्पर्शरहित आत्मा छे, एने स्पर्शवाळा कोइ शस्त्रो अडी शके नहीं, आग अडी शके नहीं, रस्सी बांधी शके नहीं, कोइ एने अडी शके नहीं एवं आ तत्त्व, आ आत्मतत्व, कदी आगमां बळे नहीं, शस्त्रोथी छेदायभेदाय नहीं. जो ए स्वभावमा आरुढ होय जे काळे, ते काळे परिस्थितिनो प्रभाव एना . उपर पडतो नथी. ओपरेशन होलमां शरीरनो अमुक भाग इंजेकशन द्वारा सूनो करवामां आवे छे. एटले एमां जे चेतना-करंट छे, ते विषमय प्रयोग होवाथी आटलो भाग खोटो करवो होय, शून्य करवो होय तो अमुक जग्याए इंजकशन लगावे एटले आ खाली थइ जाय. ए करंट संकोचाइने बाकीना हिस्सामां चाल्यु जाय एटले एने पछी कापवामां आवे छताये दरद थतुं नथी. ज्यारे करंट प्रसरवा मांडे त्यारे खबर पडे
SR No.032295
Book TitleParam Guru Pravachan 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1998
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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