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________________ आपणे जइशुं ट्रेइनमां तो कर्म जाशे प्लेइनमां ! बे डगलां आगळने आगळ. ए परिस्थितिओ गमे त्यां जइशु-पुण्यरुपे के पापरुपे. जे कंइ सिलक छे ते सामे आवीने हाजर थशे. जे हालतमां छीए ते ज हालतमां रहीने भाव पलटी नांखवाना. जे भाव परभाव छे, तेने स्वभाव करी नांखवाना. 'स्व'ने जाण्या करवानुं काम करवान. अने जो आपणु होय तो शुं छे ? “सर्वस्व ", सर्व स्व, स्व ज सर्व छे. बधु पोतानुं जे छे ते "स्व" छे, अने भाव "स्व", "स्व" एटले धन. "स्व" शब्दनां घणा अर्थो थाय छे. सर्वस्व समर्पण-त्यां कने व एटले धन जेटलं हतु ते बधुं आपी दीवु, सर्वस्व समर्पण कर्यु तो अहीं भाव व – स्वभाव. — भाव ही धन अपना है। इस ड्राइवर साहब के पास यदि कोई धन हैं तो क्या है ? भाव । भाव को चाहे शुद्ध रुप में वापरो, चाहें अशुद्ध रूप में । भावने शुद्ध वापरो के अशुद्ध. अशुद्ध वे प्रकारे -शुभ अने अशुभ. शुभ भाव वडे पुण्यबंध, अशुभ भाव वडे पापबंध अने शुद्ध भाव वडे बंधरहित स्थिति. एटले पोताना भावोने “ख” माटे ज खर्चा. आ “पर” संबंधी, आ देहादि संबंधी जे भावो आपणे स्फुरावीए छीए ए परभाव छे. आ परिस्थितिओने लीधे जे परने निमित्ते जे भावो ऊठे छे-आ जोइए, आ न जोइए, आ मारुं, आ तारुं, आ सारं, आ खराब, ए वगेरे भावो ऊठे छे ते परभावो छे. ए भावोने बदलवाना छे. स्वने अनुकूळ करवाना छे. एटले आ शरीर रुप
SR No.032295
Book TitleParam Guru Pravachan 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratap J Tolia
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1998
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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