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________________ नगर द्वारा उल्लिखित पव्वइया उक्त पाविया हो सकता है, जिसे 'चाचर' कहा जा सकता है। डा० उपाध्ये ने डा० शर्मा के सुझाव का समर्थन किया है।' डा० ज्योतिप्रसाद जैन ने पव्वइया की पहचान पद्मावती या पवाया (ग्वालियर के पास) से करने का सुझाव दिया है, किन्तु तब चन्द्रभागा की पहचान चंबल से करनी होगी। जबकि चंबल का अपर नाम चन्द्रभागा अभी तक कहीं प्राप्त नहीं हुआ है। पाटलिपुत्र (७५.१०, ८८.३०)-राजकुमार तोसल कोसल से भागकर पाटलिपुत्र में राजा जयवर्मन् के यहाँ कार्य करने लगा था। पाटलिपुत्र से रत्नद्वीप को धन कमाने के लिए धनदत्त सेठ गया था (८८.३०)। इससे ज्ञात होता है कि पाटलिपुत्र का राजनैतिक एवं व्यापारिक महत्त्व था। प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में पाटलिपुत्र के लिए अन्य १२ नाम प्रयुक्त होते थे।४ कुसुमपुर इसका प्रसिद्ध नाम था। ईसा की पांचवी शदी पूर्व से छठी शताब्दी तक इस नगर का अपरिमित उत्कर्ष हुआ। किन्तु सातवीं शताब्दी में युवानचुवांग के आगमन के समय यह नगर पतनोन्मुख था। पुरातत्त्व विभाग द्वारा किये गये अन्वेषणों के आधार पर ज्ञात होता है कि प्राचीन पाटलिपुत्र आधुनिक पटना के समीप उस स्थान पर वर्तमान था, जहाँ कुमराहर तथा बुलन्दीबाग नामक ग्राम बसे हुए हैं । प्रयाग (५५.१९)-प्रयाग का उल्लेख पाप-प्रायश्चित्त के प्रसंग में हुआ है कि वहाँ के वटवृक्ष की परिक्रमा करने से पुराना पाप भी नष्ट हो जाता है। वटवृक्ष की मान्यता आदि के सम्बन्ध में आगे धार्मिक-जीवन वाले अध्याय में प्रकाश डाला जायेगा। कुव० के उल्लेख से प्रयाग और कोशाम्बी का सामीप्य स्पष्ट होता है । प्रयाग का प्राचीन इतिहास, उसकी धार्मिक स्थिति एवं भौगोलिक पहचान आदि पर डॉ० उदयनारायण राय ने पर्याप्त प्रकाश डाला है।" वर्तमान प्रयाग ही प्राचीन प्रयाग था। प्रभास (४८.२५)-यह एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान था। यहाँ शिवपूजा को प्रधानता थी। यहाँ तीर्थयात्रियों की भीड़ लगी रहती थी।' काठियावाड़ में १. वही, पृ० १०१. २. द जैन सोर्सेज आफ द हिस्ट्री आफ एन्शियण्ट इंडिया, दिल्ली १९६४, पृ० १९५. ३. पत्तो पलयमाणो य पाडलिउत्तं णाम महाणयरं, कु० ७५.१०. ४. रा०-प्रा० नं०, पृ० १४९. ५. पाटलिपुत्र एण्ड एन्शियण्ट इंडिया युनिवर्सिटी आफ इलाहाबाद स्टडीज़, १९५७,पृ० १९ ६. जर्नल आफ रायल एशियाटिक सोसायटी, १९१५, पृष्ठ ६९. ७. रा०-प्रा० न०, पृ० ९८-१०७. ८. अ०-ए० टा०, पृ० ३१.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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