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________________ ६६ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन धनकपुरी ( १३८.१४) विन्ध्याटवी में स्थित चितामणि- पल्लि धनकपुरी सदृश धन-समृद्धि से युक्त थी - धणयपुरी चेय धण समिद्धीय ( १३८.१४) । विजयपुरी की उपमा भी धनकपुरी की समृद्धि से दी गयी है ( १४९.२२) । इसके ज्ञात होता है कि यह कुबेर की नगरी थी। इसकी वास्तविक पहचान मुश्किल है। पद्मनगर ( १२६.१ ) – पद्मनगर का उल्लेख संन्यासिनी ऐणिका के जीवनवृत्त के प्रसंग में हुआ है । यह नगर कहीं विन्ध्यप्रदेश में स्थित होना चाहिए । पर्वतका ( २८२.१९) - उद्योतनसूरि ने ग्रन्थ की प्रशस्ति में पर्वतिका नगरी का उल्लेख किया है कि वह चन्द्रभागा नदी के किनारे स्थित थी, जिस पर श्री तोरराज का शासन था । यद्यपि भारतीय इतिहास से ज्ञात होता है कि मिहिरकुल की भारतीय राजधानी शाकल या सियालकोट थी, किन्तु उद्योतन प्रथम बार यह कहा है कि तोरमाण पव्वइया से शासन करता था । पव्वइया जिस नदी के किनारे स्थित था उस चन्द्रभागा की पहचान आधुनिक चिनाव से की जाती है, जिसे टोलेमी ने सन्दवल कहा है भेलम और चिनाव नदी के मिश्रित बहाव को भी चन्द्रभागा कहा गया है। अतः चिनाब के किनारे पर ही पव्वइया को स्थित माना जा सकता है । । मुल्तान के उत्तर-पश्चिम और रावी तथा सतलज के बीच का पंजाबी प्रदेश पर्वत कहा जाता था । यह पर्वत ही पव्वइया अथवा पर्वतिका हो सकता है। मुनि जिनविजय एवं एन० सी० मेहता ने यह सुझाव दिया है कि हुयान्त्संग द्वारा उल्लिखित पो- फाटो ( Po-fa-to) या पो-ला फाटो की पहचान पर्वतिका से की जा सकती है, किन्तु डा० उपाध्ये अभी इसमें पर्याप्त अनुसंधान की आवश्यकता समझते हैं । " पर्वतिका के सम्बन्ध में डा० दशरथ शर्मा का कथन है कि सीहरास (Siharas) ने जो चार गवर्नर नियुक्त किये थे, उनमें से तीसरा लन्दा एवं पाविया के किले पर किया था। पाविया को चाचपूर कहा जाता था, जो वर्तमान में 'चाचर' के नाम से जाना जाता है। अतः उद्योतनसूरि १. तीरम्मितीय पयडा पव्वलया णाम रयण सोहिल्ला । जत्थट्ठिएण भुत्ता पुहई स० - स्ट० ज्यो०, पृ० ४०.४४. डे - ज्यो० डिक्श०, पृ०, ४७. वही, पृ० १५० २. ३. ४. सिरि- तोररएण ।। २८२.६ ५. उ० – कुव० इ०, पृ० १०० (नोट) । ६. भारतीय विद्या (हिन्दी) भाग २ नं० १, पृ० ६२- ३, १९४१-४२. ७. इलियट एवं डानसन - हिस्ट्री आफ इण्डिया एज टोल्ड वाइ इटस् ओन हिस्टोरियन्स, भाग १, पृ० १३८-३६६ एवं १४०.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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