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________________ भारतीय जनपद सौराष्ट्र (१५०.२०)-कुव० में सौराष्ट्र के छात्रों को 'सोरटु' कहा गया है । सौराष्ट्र जनपद प्राचीन समय में व्यापार का बहुत बड़ा केन्द्र था। महाभारत के अनुसार सुराष्ट्र देश में चमसोद्भेद, प्रभासक्षेत्र, पिण्डारक एवं उर्जयन्त (रैवतक) पर्वत आदि पुण्य स्थानों का उल्लेख आया है (वनपर्व, ८८.१६, २४)। अतः काठियावाड़ और गुजरात का कुछ प्रदेश सौराष्ट्र के अन्तर्गत था। कुवलयमालाकहा में उल्लिखित उपर्युक्त जनपदों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि आठवीं शताब्दी में उत्तर-दक्षिण एवं पूर्व-पश्चिम के जनपदों में पारस्परिक सम्बन्ध थे। व्यापार एवं अध्ययन के लिए विभिन्न जनपदों के लोग उत्तर से दक्षिण की यात्रा करते थे। प्रत्येक जनपद की भाषा एवं रहन-सहन भिन्न होते हुए भी वहाँ के निवासियों के मिलने-जुलने में बाधा नहीं थी।। उद्द्योतनसूरि द्वारा उल्लिखित जनपदों को आधुनिक पहचान के आधार पर कहा जा सकता है कि गुप्तकाल के वाद प्राचीन भारत बड़े-बड़े जनपदों में विभाजित था। उत्तर में कन्नौज, कीर, काशी, स्त्रीराज्य एवं वत्स, दक्षिण में आन्ध्र, कर्णाटक, गोल्ल, महाराष्ट्र, महिलाराज्य एवं श्रीकंठ, पूर्व में मगध, विदेह एवं पूर्वदेश तथा पश्चिम में गुर्जरदेश, ढक्क, मरुदेश, मालव, लाट, सिन्ध एवं सौराष्ट्र जैसे समृद्धशाली एवं प्रसिद्ध जनपद थे। इन सबके मध्य में अन्तर्वेद एवं अवन्ति जैसे जनपद मध्यदेश से जुड़े हुए थे। इन जनपदों के अन्तर्गत अनेक नगर बसे हुए थे।
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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