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________________ ४४ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन से विस्तृत एवं विशिष्ट है। ग्रन्थकार ने दुर्जन को कुत्ता, काग, खर, कालसर्प, विष, खली एवं अशुचि पदार्थ सदृश तथा सज्जन को पूर्णचन्द्र, मृणाल, गज, मुक्ताहार एवं समुद्र-सदृश कहा है (४.५) । कालान्तर में यह अभिप्राय संस्कृतप्राकृत और अपभ्रंश काव्यों की परम्परा में प्रयुक्त होता हुआ हिन्दी के प्रबन्धकाव्यों में भी पाया जाता है, जिसका सर्वोत्तम उदाहरण तुलसीदास के रामचरितमानस में मिलता है ।' कुवलयमाला के इस वर्णन का अनुकरण गुणपाल ने अपने जम्बुचरियं में किया है। एक-दो गाथाएँ भी मिलती जुलती हैं-पृ० १.२, गाथा नं०६)। ऐतिहासिक राजाओं के सन्दर्भ कुवलयमालाकहा यद्यपि एक कथा ग्रन्थ है, किन्तु प्रसंगवश उद्द्योतनसूरि ने कई ऐतिहासिक तथ्य उद्घाटित किये हैं, जिनसे राजस्थान एवं मालवा के इतिहास पर नवीन प्रकाश पड़ सकता है । लेखक ने न केवल प्राचीन कवियों का, अपितु कई ऐतिहासिक राजाओं का भी ग्रन्थ में उल्लेख किया है । विभिन्न प्रसंगों में निम्न २७ राजाओं के नाम उल्लिखित हैं, जिनमें से अधिकांश ऐतिहासिक हैं : अवन्ति (२३३.१९), अवन्तिवर्द्धन (५०.३१), कर्ण (१६.१९), कोसल (७३.३), चन्द्रगुप्त (२४७.१३), चारुदत्त (२३.१०), जयवर्मन् (७५.१०), तोरमाण (२८२.६), दिलीप (१५.११), देवगुप्त (३.२८, २८२.८), देवराज (२३.१०), दृढ़वर्मन् (९.१३), नल (१५.११), नहुष (१५.११), प्रभंजन(३.३१), पांडव (२७.१६), वलिराज (२३.१०), भरत (१५.११), भिगु (१२३.१६), भीम (२३.११), मंधात (१५.११), महेन्द्र (९९.१४), माधव (कृष्ण) (१५.११), रणसाहस (२३.१०), विजयसेन (१६२.१), महासेन (११०.८), विजयनराधिप (१२५.४), बोप्पराज (२३-९), वैरिगुप्त (२५०.८), श्रीवत्सराजरणहस्तिन् (२८३.१), श्रीवत्स (१२५.३), श्रीवर्द्धन (१२५.३), शीलादित्य (२३.१०), शूरषेण (२३.१०), सगर (१५.११), हाल (३.१९) एवं हरिगुप्त (२८२.७) । ____ इनमें से कुछ ऐतिहासिक राजाओं की पहचान एवं परिचय इस प्रकार है :अवन्ति एवं अवन्तिवर्द्धन कुवलयमाला में उद्योतन ने अवन्ति नरेश के सम्बन्ध में तीन प्रमुख सन्दर्भ दिये हैं । प्रथम संदर्भ में उज्जयिनी के राजा की सेवा में कोई क्षत्रिय वंश उत्पन्न क्षेत्रभट नाम का एक ठाकुर रहता था। बाद में उसके पुत्र वीरभट एवं उसके पुत्र शक्तिभट ने उज्जयिनी के राजा की सेवा की । शक्तिभट क्रोधी स्वभाव का था। एक बार राज्य-सभा में शक्तिभट आया। उसने राजा अवन्तिवर्द्धन को प्रणाम कर अपने आसन की ओर देखा, जहाँ भूल से कोई पुलिंदराजपुत्र बैठ १. अ०-का० सां० अ०, पृ० १४.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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