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________________ ऐतिहासिक-सन्दर्भ २१. यार होकर के अब तुम घर के मालिक बन गये (२५२.२२) । २२. जल में रहकर मगर से बैर नहीं होता (२५४.५) । २३. पूछ पकड़ने में हाथी का ध्यान नहीं रहता (२०४-१७) । २४. पत्थर की शिला कहीं जल पर तैरती है (२०४.२१) ? २५. विष भी कभी अमृत हुआ है (२०४-३३) ? २६. अग्नि कभी शीतल हुई है (२०५-५) ? इनमें कुछ सूक्तियाँ ऐसी हैं जो संस्कृत में सुप्रसिद्ध हैं; जैसे१. अपुत्रस्य गतिर्नास्ति । २. विषस्य विषमौषधम् । इसके अतिरिक्त स्त्रियों, सज्जनों, भाग्य आदि के सम्बन्ध में कवि का जो सूक्तिगत दृष्टिकोण है वह अनेक संस्कृत सुभाषितों में विखरा पड़ा है। उदाहरण के लिए स्त्रियों के सम्बन्ध में कथासरित्सागर की कुछ सूक्तियाँ उद्धृत को जा रही हैं : १. प्रत्ययः स्त्रीषु मुष्णाति विमर्श विदुषामपि । २. प्रायः स्त्रियो भवन्तीह निसर्गविषमाः शठाः । ३. बत स्त्रीणां प्रगल्भानां चञ्चलाश्चित्तवृत्तयः । ४. भर्तारं हि विना नान्यः सतीनामस्ति बान्धवः । ५. भर्तृमार्गानुसरणं स्त्रीणां च परमं व्रतम् । उद्द्योतनसूरि के समस्त सूक्ति-नीति-वाक्यों का तुलनात्मक अध्ययन एक ओर तो उनके प्रेरणामूल साहित्य को जानने में सहायक होगा और दूसरी ओर उनके साहित्यिक वैशिष्ट्य को सूक्ति-परम्परा के आधार पर रेखांकित कर सकेगा। सज्जन-दुर्जन वर्णन उद्योतनसूरि ने कथा प्रारम्भ करने से पूर्व सज्जन-दुर्जन व्यक्तियों के स्वभाव की भी चर्चा की है। इस वर्णन द्वारा वे अपनी कथा का क्षेत्र अधिक व्यापक करना चाहते हैं और अपनी त्रुटियों के प्रति विनम्र भाव भी व्यक्त करना चाहते हैं। सज्जन-दुर्जन का वर्णन कृतियों में देने की परम्परा का प्रथम उल्लेख कालिदास ने रघुवंश (१-१०) में किया है। महाकवि बाण ने कादम्बरी में सज्जन-दुर्जन स्वभाव को सुन्दर ढंग से स्पष्ट किया है और यह कथा प्रारम्भ करने से पूर्व उन्हें स्मरण किया है ।' उद्योतनसूरि का प्रस्तुत प्रसंग कादम्बरी' १. अकारणाविष्कृतवरदारुणादसज्जनात्कस्य भयं न जायते । विषं महाहेरिव यस्य दुर्वचः सदुःसहं संनिहितं सदा मुखे ॥ इत्यादि । काद० पू० ५-७. २. अ०-का० सां० अ०, पृ० १४.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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