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________________ ऐतिहासिक सन्दर्भ ३५ प्राचीन ग्रन्थकार और उनके ग्रन्थ उद्योतनसूरि ने कुवलयमालाकहा में अपने पूर्ववर्ती २२ ग्रन्थकारों एवं ३१ रचनाओं का उल्लेख किया है । वर्णनक्रम से उनका परिचय इस प्रकार है: : छप्पण्णय - छपण्णय का अर्थ स्पष्ट नहीं है । उद्योतन ने इस शब्द का तीन बार प्रयोग किया है (३.१८, २५ एवं १७७ २ ) । प्रथम में पादलिप्त और सातवाहन के नाम के अनन्तर समस्त पद में', द्वितीय में बहुवचन में निर्देश है जिन्हें कविकु जर कहा गया है तथा तीसरे में एक चित्रालंकारयुक्त पद्य का उल्लेख करते हुये कहा गया है कि इस पद्य को पढ़कर छप्पण्णय की बुद्धि के विकल्पों से मति का विस्तार होता है ( १७७ . २ ) । इन तीनों सन्दर्भों से एक तो यह स्पष्ट है कि यह कवि के बारे में ही उल्लेख है । दूसरे, समासान्त पद और बहुवचन में आने के कारण यह स्पष्ट नहीं है कि यह किसी एक कवि का नाम था (जैसा की प्रथम सन्दर्भ से आभासित होता है) अथवा विशिष्ट कवि - परम्परा का । इतना अवश्य लगता है कि छप्पण्णय विदग्ध भणितिओं और चित्रवचनों के प्रयोग में दक्ष थे । 3 यदि डा० उपाध्ये के अनुसार छप्पण्णय का संस्कृत रूप षट्प्रज्ञ मान लिया जाये तो उससे भी यही प्रमाणित होता है कि यह कवि या कवि परम्परा अत्यन्त विचक्षण एवं विदग्ध थी । डा० उपाध्ये ने यह लिखा है कि यह किसी एक कवि का नाम न होकर कवि समुदाय का नाम था । डा० वासुदेवशरण अग्रवाल भी इसी मत को मानते हैं और वे छप्पण्णय को कवि समूह ( क्लब आफ पोईट्स ) . बताते हैं । जो भी हो, इतना निश्चित है कि पादलिप्त, सातवाहन, व्यास, वाल्मीकि के साथ छप्पण्णय का उल्लेख और साथ ही यह कहना कि उनके साथ अनेक कविकंजरों की उपमा दी जाती है, इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि उद्योतनसूरि स्वयं छप्पण्णय से अत्यन्त प्रभावित थे । यह दुर्भाग्य ही है कि छप्पण्णय की किसी कृति या संकलन का उल्लेख न उद्योतनसूरि ने किया है और न आज हमें प्राप्त ही होता है । पादलिप्त एवं तरंगवती - उद्योतनसूरि ने श्लेषालंकार द्वारा इनका परिचय दिया है । जिस प्रकार पर्वत से गंगानदी प्रवाहित हुई है, उसी प्रकार चक्रवाक युगल से युक्त सुन्दर राजहंसी को आनन्दित करनेवाली तरंगवती कथा पादलिप्तसूरि से निःसृत हुई ( ३.२० ) । पादलिप्तसूरि का जन्म का नाम नगेन्द्र था, साधु होने पर आप पादलिप्त कहलाये । आप सातवाहनवंशी राजा हाल के दरबारी कवि थे । इनका समय ई० सन् ७८-१६२ के मध्य माना जाता १. पालित्तय- सालाहण- छप्पण्णय-सीह - णाय सद्देहिं – (३.१८ ) । २. ३. छप्पण्णयाण किं वा भण्णउ कइ कुजराण भुवणम्मि । ( ३.२५ ) । 'छप्पण्णणय गाहाओ' जर्नल आफ द ओरियन्टल इन्स्टीट्यूट बड़ोदा, भाग ११, नं० ४, पृ० ३८५-४०२ पर डा० उपाध्ये का लेख ।
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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