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________________ २४ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन की परीक्षा के लिए कुँए में एक पत्थर गिरा दिया और स्वयं छप गया। पत्नी एवं उसके माता-पिता ने समझा मानभट कुंए में गिर गया है। अतः वे तीनों भी कुंए में कूद गये । मानभट ने सोचा कि मेरे कारण ही परिवार नष्ट हुआ है। अतः वह प्रायश्चित्त के लिए चल पड़ा। कौशाम्बी में आकर उसने धर्मनन्दन मुनि से दीक्षा ले ली और सम्यक्त्व का पालन करते हुए अपने पापों को कम करने लगा। माया : मायादित्य की कथा वाराणसी के दक्षिण-पश्चिम में सालिग्राम नाम का एक गाँव था। वहाँ गंगादित्य नाम का गरीब वैश्य रहता था। वह कठोर, कुरूप, अनैतिक एवं कपटी स्वभाव वाला था। अतः उसको लोग मायादित्य कहने लगे थे। मायादित्य की स्थाणु नामक युवक से मित्रता थी। दोनों धन कमाने के लिए प्रतिष्ठान गये। वहाँ उन्होंने पाँच-पाँच हजार मुद्राएँ अजित की तथा उनके बदले पाँच-पाँच रत्न ले लिये । चोरों से बचने के लिए घर लौटते समय उन्होंने तीर्थयात्रियों का भेष धारण कर लिया। रास्ते में मायादित्य ने स्थाणु के रत्नों को प्राप्त करने के अनेक प्रयत्न किये। एक बार उसे कुएँ में ढकेलकर रत्न लेकर भाग गया। किन्तु चोरों के समूह ने उसे पकड़ लिया और स्थाणु को खोजकर उसके रत्न उसे वापिस करा दिए। फिर भी मायादित्य के प्रति स्थाणु का व्यवहार मित्रवत् बना रहा। अतः मायादित्य को अपने व्यवहार पर ग्लानि हई और वह प्रायश्चित्त करने चल पड़ा। गाँव के बड़े-बूढ़ों ने उसे गंगा-स्नान करने की सलाह दी। मायादित्य गंगा-स्नान के लिए चल पड़ा। रास्ते में धर्मनन्दन मुनि के उपदेशों को सुनकर उसने जिनधर्म में दीक्षा ले ली। लोभ : लोभदेव की कथा तक्षशिला के दक्षिण-पश्चिम में उच्चस्थल नाम का एक गाँव था। वहाँ सार्थवाह का पुत्र धनदेव रहता था। वह अत्यन्त लोभी था अतः उसे लोग लोभदेव कहने लगे। धन कमाने के लिए एक बार वह घोड़े लेकर दक्षिण में सोपारक गया। वहाँ भद्रश्रेष्ठी के यहाँ ठहरा। वहाँ अपने घोड़े बेचकर बहुत धन कमाया। सोपारक की स्थानीय व्यापारियों के संगठन ने उसका स्वागत किया। उस आयोजन में सम्मिलित व्यापारियों ने विभिन्न देशों में किये गये व्यापार विषयक अपने-अपने अनुभव सुनाये। धनदेव अधिक धन कमाने की इच्छा से भद्र श्रेष्ठी के साथ रत्नद्वीप गया। वहाँ उन्होंने अपार धन कमाया। जब वे वापिस लौट रहे थे तो लोभदेव ने भद्रश्रेष्ठी के हिस्से को भी हड़पने के लिए उसे समुद्र में गिरा दिया। भद्रश्रेष्ठी ने राक्षस के रूप में जन्म लेकर लोभदेव के जहाज को समुद्र में डुबो दिया। किसी प्रकार लोभदेव तारद्वीप में जा लगा, जहाँ उसे समुद्रचारियों द्वारा पकड़ कर उसके रुधिर से स्वर्ण बनाने का कार्य
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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