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________________ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन कैसे उस पर अधिकार किया तथा कैसे मालव-नरेश के पंचवर्षीय पुत्र महेन्द्र को वह पकड़ कर लाया है, यह सब कह सुनाया। राजा दृढ़वर्मन् ने राजकुमार महेन्द्र का स्वागत किया। कुमार ने अपने व्यवहार से राजा एवं रानी का हृदय जीत लिया। राजा ने कुमार को अपने पुत्र की भाँति राजमहल में रखने का आदेश दिया। रानी प्रियंगुश्यामा एक दिन कोपभवन में थी। राजा ने पता किया कि महेन्द्रकुमार जैसा उनके पुत्र न होने से वह दुःखी है। रानी ने राजा से पुत्रप्राप्ति के लिए देवी की अर्चना करने को कहा। राजा ने कुलदेवता, राजलक्ष्मो की दो दिन तक आराधना की। तीसरे दिन जब राजा स्वयं अपना बलिदान करने के लिए तैयार हो गया तो देवी उसके समक्ष प्रगट हुई और राजा को उसने श्रेष्ठ पुत्ररत्न-प्राप्ति का वरदान दिया। .. निश्चित अवधि में रानी ने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। स्वप्न में रानी ने चन्द्रमा में कुवलयमाला के दर्शन किये थे, अतः पुत्र का नाम कुवलयचन्द्र रखा गया। पंचधात्रियों के संरक्षण में कुमार का लालन-पालन हुआ। आठ वर्ष की आयु में कुमार को लेखाचार्य के पास अध्ययन करने के लिये भेजा गया. जहाँ बारह वर्ष तक रह कर कुवलयचन्द्र ने सभी कलाओं में योग्यता प्राप्त की। गुरुकुल से लौटकर कुमार ने माता-पिता का आशीष प्राप्त किया। तदनन्तर पिता की प्राज्ञा से कुवलयचन्द्र अश्वक्रीडा के लिए राजा एवं अन्य कुमारों के साथ विनीता के बाजारों से होता हुआ अश्वक्रीड़ा-स्थल में पहुंचा। अश्वक्रीड़ा करते हुए कुवलयचन्द्र का अश्व उसे दक्षिण दिशा में ले जाकर आकाश में उड़ गया। कुवलयचन्द्र ने इस घटना की वास्तविकता ज्ञात करने के लिए अश्व की ग्रीवा में छुरिका से तीव्र प्रहार किया। अश्व भूमि पर गिर पड़ा और मर गया। कुमार इस घटना पर विचार ही कर रहा था कि उसे आकाशवाणी सुनायी पड़ी कि वह दक्षिण की ओर आगे बढ़े तो उसे आश्चर्यजनक दृश्य देखने को मिलेंगे। कुमार उस ओर बढ़ा। वह विन्ध्याटवी में पहँचा। वहाँ उसे वटवृक्ष के नीचे बैठे हुए एक मुनिराज दिखायो दिये। मुनिराज की बांयी ओर एक दिव्यपुरुष तथा दाँयी ओर एक सिंह विराजमान था। कुवलयचन्द्र का उन्होंने स्वागत किया। उसने जब अश्व के उड़ाने की घटना आदि के सम्बन्ध में मुनिराज से प्रश्न किये तो मुनिराज ने उसे अपने समक्ष बैठाकर इस प्रकार कहना प्रारम्भ किया : _ "वत्स जनपद में कौशाम्बी नगरी है। वहाँ के राजा का नाम पुरन्दरदत्त था। उसका प्रधानमन्त्री वासव जैनधर्म का अनुयायी था। किन्तु राजा जैनधर्म पर विश्वास नहीं करता था। एक दिन नगर के उद्यान में मुनिराज धर्मनन्दन के आगमन पर वासव राजा पुरन्दरदत्त को भी उनके पास ले गया। राजा ने मुनिराज एवं उनके शिष्यों के वैराग्य धारण करने का कारण पूछा। राजा का उत्तर देते हए मुनिराज धर्मनन्दन ने संसार के स्वरूप का विस्तृत वर्णन किया और बतलाया
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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