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________________ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन सोचा-यह देवी भी हमारे समर्पण से क्रोधित हो गई है (१९२.४) । इसलिये अव पर्वत पर से गिरकर अपना प्राणान्त कर लेना चाहिये (१६२.९) । किन्तु वहाँ उनको एक मुनिराज की दिव्यवाणी ने ऐसा करने से बचा लिया (१९२.१३)। इस प्रमुख प्रसंग के अतिरिक्त ग्रन्थ में अन्यत्र भी तन्त्र-मन्त्र से सम्बन्धित कुछ सन्दर्भ मिलते हैं। विजयसेन की रानी भानुमति ने सन्तान प्राप्ति के लिये अनेक मंडल लिखवाये तथा तन्त्रवादियों को एकत्र किया तब कहीं उस पर किसी भूत की कृपा हुई (१६२.४, ५) । एक अन्य कथा में सुन्दरी जब अपने मृत जवान पति को मोह के कारण जीवित मानती हुई उसे जलाने न दे रही थी तो उसके स्वजनों ने उसे गारूल्लवादियों, भूत-तान्त्रिकों एवं मन्त्रवादियों से दिखवाया, फिर भी कोई फायदा नहीं हुआ (२२५.१३) । इत्यादि । उपर्युक्त विवरण में अंजन-जोग, बिलप्रवेश, मुद्रा, मण्डल, समय, साधन, भूततन्त्र, गारुल्लविद्या, मन्त्रविद्या ऐसे पारिभाषिक शब्द हैं, जो तत्कालीन तान्त्रिक साधना में प्रचलित थे। पशुपत एवं कापालिक शैव सम्प्रदायों में इनके बहुविध प्रयोग होते थे।' कुवलयमाला में दो बार जोगिनी का भी उल्लेख हुआ है-(१२.२७ एवं.१९६.१३) । जोगिनी का सम्बन्ध महाकाल शिव से था एवं किसी विद्या को सिद्ध करने के साथ यहाँ वणित हुआ है (१९६.१३)। इससे ज्ञात होता है कि उस समय कई प्रकार की जोगिनी होतो थीं, जिन्हें कई प्रकार के कार्य के लिए सिद्ध किया जाता होगा। जोगिनियों का सम्बन्ध तान्त्रिक विद्या से था। १०वीं सदी तक तान्त्रिक विद्या इतनी विकसित हुई कि जोगिनियों की मत्तियाँ बनने लगी थीं। ६४ जोगिनियों को मूत्तियाँ भेड़ाघाट एवं खजुराहो के मन्दिरों में उत्कीर्ण प्राप्त होती हैं। सूर्य-उपासना __ कुवलयमालाकहा में सूर्य उपासना से सम्बन्धित जो सन्दर्भ उपलब्ध हैं उनसे ज्ञात होता है कि इस युग तक सूर्य-पूजा पर्याप्त विकसित हो चुकी थी। सूर्य के अरविन्द, आदित्य, रवि आदि नाम ग्रन्थ में प्रयुक्त हुए हैं। मूलस्थान सूर्यपूजा का प्रमुख केन्द्र थ।। रेवन्तक नामक देवता भी सर्य-उपासना के अन्तर्गत सम्मिलित था। इन सबके सम्बन्ध में संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है अरविन्दनाथ, आदित्य, रवि-कुवलयमाला में अरविन्द का दो बार उल्लेख है (२.२९, १४.५)। प्रथम उल्लेख में अरविन्द का धर्म लोकप्रसिद्ध है तथा दूसरे में अरविन्दनाथ को पुत्र प्राप्ति के लिए बलि दी गयी है। अन्यत्र १. शास्त्री, शिवशंकर अवस्थी, 'मन्त्र और मातृकाओं का रहस्य, वाराणसी, ६६. २. यशस्तिलक एण्ड इण्डियन कल्चर, पृ० ३.६९-९७.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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