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________________ ३५० कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन २०६.७)। ऐसा मत किस सम्प्रदाय विशेष में प्रचलित था, कुछ ज्ञात नहीं हो सका । जीवहिंसा प्रधान होने के कारण राजा इसे धर्म नहीं मानता (२०६.९)। सम्भवतः तत्कालीन शैवधर्म के किसी सम्प्रदाय में ऐसी धारणा रही हो । देवी-देवता कुवलयमालाकहा में अनेक देवी-देवताओं के उल्लेख विभिन्न प्रसंगों में प्राप्त होते हैं, जो इस बात के प्रमाण हैं कि उद्योतनसूरि अपने समय के धार्मिक जीवन से पूर्ण परिचित ही नहीं अपितु सूक्ष्मदृष्टा भी थे। इन्होंने ऐसे अनेक देवीदेवताओं का उल्लेख किया है, जो आठवीं सदी में भारत के विभिन्न स्थानों पर पूजे जाते थे। इस देव-परिवार के कवि ने दो भेद किये हैं-सरागी और विरागी देवता। सर्वज्ञदेव के अतिरिक्त अन्य सभी देवताओं को उन्होंने सरागी कहा है, जो पूजन, अर्चन एवं भक्ति से प्रसन्न होकर धनादि फल प्रदान करते हैं तथा भक्ति न करने पर रुष्ट हो जाते हैं ।' ग्रन्थ में उल्लिखित देव-परिवार इस प्रकार हैं(अ) आर्यदेवता अरविन्द, अरविन्दनाथ आदित्य, गजेन्द्र, गणाधिप, गोविन्द, त्रिदशेन्द्र, नागेन्द्र, नारायण, पुरन्दर, प्रजापति, बलदेव, बुद्ध, महाकाल, रवि, सूर्य, रुद्र, रेवन्तक, महाभैरव, विनायक, स्कन्द, स्वामीकुमार, शंकर, शशिशेखर, हर, हरि । (आ) अन्य देवता किन्नर, किंपुरुष, गन्धर्व, नाग, महोरग, यक्ष, लोकपाल, व्यन्तर, सिद्ध, राक्षस, भूत, पिशाच, वेताल, वइसदेव, पुढविपुरिस । (इ) देवियां अम्वा, कात्यायनी, कुट्टजा, चण्डिका, जोगिनी, दुर्गा, माता, दिधि, लक्ष्मी, सरस्वती, सावित्री, श्री, ह्री, सप्त-मातृकाएँ, पन्थदेवी (८३.२६), जातापहारिणी, पूतना, सकुनी (२७४.३४), विजया, अपराजिता जयन्ती, कुमारी, अम्बाला (२०१.२१) । ग्रन्थ में उल्लिखित इन समस्त देवी-देवताओं को उनके स्वरूप एवं कार्य आदि के आधार पर शैव, वैष्णव, वैदिक, पौराणिक, जैन एवं लोकधर्म से सम्बन्धित देव-परिवारों में विभक्त किया जा सकता है। इन धर्मों के पृथकपृथक् अध्ययन के साथ हो इनके देवी-देवताओं पर भी प्रकाश डाला जायेगा। यहाँ शैव परिवार के देवताओं का विवरण प्रस्तुत है। शिव के विभिन्न रूप-कुव० में शिव के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन प्राप्त होता है । शशिशेखर (जिनके मस्तक पर चन्द्रमा सुशोभित है), की आराधना १. भत्तीए जे उ तुठ्ठा णियमा रूसंति ते अभत्तीए। –कुव० २५७.३.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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