SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजप्रासाद स्थापत्य ३२३ बातचीत के प्रसंग में वासभवन का उल्लेख हुआ है।' तथा कुवलयचन्द्र और कुवलयमाला के विवाह के उपरान्त उन्हें वासघर की शैया पर एक साथ बैठाया गया (१७१.२८)। वासभवन के उक्त प्रसंगों से ज्ञात होता है कि धवलगृह के ऊपरिभाग में वासभवन निर्मित होते थे, जहां सोपान-वीथि द्वारा पहुँचा जाता था। वासभवन मुख्यरूप से दाम्पत्य सुखों के आगार थे । आराम की प्रत्येक वस्तु वहां उपलब्ध होती थी। यह राजाओं के सामान्य शयनागारों से भिन्न होता था। इसकी स्थिति धवलगृह के ऊपरीतल में प्रगीवक के समीप में होती थी। दूसरी ओर सौध होता था, जहाँ केवल रानियाँ उठती-बैठती थीं। उक्त विवरण से यह भी स्पष्ट है कि राजा के वासभवन से प्रसूतिगृह अलग होता था। सम्भवतः यह ऊपरीतल के पीछे भाग में स्थित रहा होगा, जिसे बाण ने चन्द्र-शालिका कहा है, जहाँ बैठकर यशोवती गर्भावस्था में शालभंजिकाओं को देखा करती थी। कुवलय० में पति-पत्नी के शयनगृह को वासघर भी कहा गया है । मानभट की पत्नी उद्यान से लौटकर अपने वासघर में प्रविष्ट होती है ताकि उसे एकान्त मिल जाये। उसकी सास वासघर को सोवणय कहती है (५३.७३) । अतः गावों में शयनगृह वासघर अथवा सोवणक के रूप में जाने जाते थे। भोजपुरी में विवाह के बाद प्रथम दिन पति-पत्नी से मिलने के लिए 'गृहवास' कहते हैं। भवन-उद्यान उद्द्योतन ने कुवलयचन्द्र और कुवलयमाला के प्रथम मिलन-स्थान के रूप में भवन-उद्यान का वर्णन किया है। कुवलयमाला की धात्री भोगवती के संकेत देने पर कुमार अपने मित्र महेन्द्र के साथ भवन उद्यान में पहुँचता है। वह उद्यान अनेक पादप, वल्ली, लता आदि से युक्त था। प्राचीन भारतीय राजकुल स्थापत्य में धवलगृह के साथ भवन उद्यान (गृहोद्यान) का निर्माण एक आवश्यक अंग था। उद्द्योतनसूरि के पूर्व एवं बाद के साहित्य में गृह-उद्यान-स्थापत्य के अनेक उल्लेख मिलते हैं। प्राचीन राजमहलों के अवशेषों में भी गृह-उद्यान के दर्शन होते हैं। दिल्ली के लालकिले का नज़रबाग और उसमें बता हुआ तालाब प्राचीन गह-उद्यान और वापी का मध्यकालीन रूप है। लन्दन के हेम्पटन कोर्ट महल में इसे ही प्रिविगार्डन या पाउण्डगार्डन कहा गया है।" भवन-उद्यान के उक्त वर्णन के प्रसंग में उद्योतन ने उद्यान के इन प्रमुख अंगों और क्रीडाशैल का उल्लेख किया है :१. भणमाणीओ णिग्गयाओ वास-भवणाओ-(८५.२०). अ०-ह० अ०, पृ० २०८. जइ तुब भे राइणो भवणुज्जाणं वच्चह...।-१६५-३१. संपत्ता य तमज्जाणं अणेय-पायव-वल्ली-लया-संताण-संकुलं ।-१६६-१५. ५. अ०-ह० अ०, पृ० २१३. im
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy